उरांवों की ऎतिहासिक विरासत रोहतासगढ़

-डाॅ.फ़्रान्सिस्का कुजूर
यह पुस्तक डॅा. फ़्रान्सिस्का कुजूर के व्दारा लिखी गई है, 2009 में जब वें रोहतासगढ़ गईं थीं तब उनका जो भी अनुभव रहा, उन्होने इस पुस्तक में लिखा है। इस पुस्तक को चार भागों में बांटा गया है, हम विस्तार में यहां पहले भाग के बारे में जानेंगे-
1.कहानी रोहतासगढ़ की (i) रोहतासगढ़ का सपना हुआ साकार (ii) रोहतासगढ़ के लिए सासाराम से यात्रा (iii) मिल गई मंजिल |
1.कहानी रोहतासगढ़ की –
लेखिका ने ये कहानी अपने दादाजी की बताई कहानी के आधार पर लिखा है,उनके दादाजी ने बताया था की रोहतासगढ़ में राजा रोइतास का शासन था,वहां की राजकुमारी थी सिंनगी दई। ये उरांवों का स्वर्ण काल था। ये अप्रैल महीने की बात है चांदनी रात में जब उनके दादाजी,चाचा,पिजाजी और गांव के दूसरे लोग इमली के पेड़ के नीचे बैठ कर बातचीत कर रहे थे,ये सुन कर लेखिका उठ गई और अपने दादाजी के पास गई,दादाजी ने उन्हें सोने को कहा,और ये कहा कि सुबह जल्दी उठना है फ़िर जनी शिकार पर जाना है। जनी शिकार हर 12 वर्षों के बाद आता है,जनी शिकार के बारे में उन्होने अपने दादाजी से पूछा तो उन्होने बताया कि,प्राचीन काल में उरांवों के राजा रोइतास ने एक गढ़(किला) बनवाया था,उनके नाम से ही वहां का नाम रोइतास रखा गया जिसे आज हम रोहतासगढ़ के नाम से जानते हैं,रोहतासगढ़ आज बिहार राज्य में हैं।
उरांवों (उरांव/Oraon) के पूर्वज सबसे पहले सिन्धुघाटी सभ्यता(हडप्पा) में रहते थे,लेकिन जब आक्रमणकारियों ने सिन्धुघाटी पर हमला किया तब उरांवों के पूर्वज वहां से बचते-बचाते दक्षिण भारत कीओर चले गये,वहां से घूमते हुए विध्यांचल सोन नदी के किनारे कैमूर पठार में आकर रहने लगे। कैमूर पठार उन्होने इसलिये चुना क्यूंकि वहां आसपास बहुत जंगल थे साथ-साथ सोन नदी और किऊल नदी का संगम था, जिससे उन्हे शुरक्षा मिल रही थी। उन्होने वहां रहने के लिये पत्थरों से एक किला बनवाया और खुशी से वहां रहने लगे, इस किले की एक खाश बात ये है की इन पत्थरों को सुर्खी चूना और उरद को पीस कर बनाया गया था।
कुछ समय तक वे बहुत खुशी से रहे लेकिन उनकी खुशियोंं को ग्रहण तब लग गया जब सबसे निकट के पड़ोसी राजा की नजर उनके खुशियों पर पड़ी, ये पलामों के चेरो राजा थे,उन्होने किले के अनदरुनी बातों का पता लगाना शुरु किया,और षडयंत्र रचने लगे की किसी तरह उरांवो लोगों पर हमला करें। उनके गुप्तचर किले पर आने जाने वालों पर छिप कर नजर रखने लगे, एक लुंदरी नामक ग्वालिन थी जो पास के गावों से दूध लेकर रोज किले में जाती है,अब गुप्तचरों ने ग्वालिन को अपने षडयंत्र में शामिल कर लिया और किले के अंदर की जानकारी हांसिल की। लुंदरी ने बताया की सरहुल एक ऎसा पर्व है जिसमे जो भी सैनिक हैं जो किले कि रखवाली करते हैं वे खा-पी कर नशे में झूमते हैं,नगाड़ा मांदर बजाकर नाचते-गाते हैं अनेक वीर पुरुष शिकार खेलने दूर दराज के जंगलों में घाटी कि ओर चले जाते हैं। ये जान कर चेरो राजा आक्रमण की तैयारी करने लगा।


सरहुल चैत महीने में मनाते हैं जब सरहुल पर्व आ गया तो चेरो राजा ने किले पर आक्रमण कर दिया,सभी वीर पुरुष शिकार पर गये थे,और जो सैनिक किले की रखवाली करते थे वे सभी नशे में धुत्त थे। लेकिन किले की महिलायें शतर्क थीं, रोइतास राजा की एक बेटी थी जिसका नाम सिंनगी था वो बहुत बहादुर और होंशियार थी इसलिए वहां के लोग उन्हे सिंनगी दई कहकर पुकारते थे। जब भी किले में वीर योध्दा नही होते थे तो उनके रक्षा का दायित्व सिंनगी दई ही संभालती थी। बुर्ज(मीनार) पर चढ़कर उन्होने देखा की चेरो राजा के सैनिक गड़ कीओर बड़ रहे हैं, सिंनगी दई ने महिलाओं को पुरुषों के कपड़े पहनने का आदेश दिया,सभी ने जितना जल्दी हो सका कपड़े पहन लिए,और तीर धनुष,कमान जो भी उनके हांथ लगा उसे लेकर आक्रणकारियों पर बरस पड़ीं और उन्हे पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। पहली बार तो चेरो राजा की सेना को वहां से भगा पाये, लेकिन उसके बाद चेरो के गुप्तचर फ़िर से ग्वालिन लुंधरी के पास गये और बोले तुमने जैसा बोला था वैसा नहीं था,फ़िर से लुंधरी ने गुप्तचरों के कहने पर जानकारी ली, उसे पता चला की महिलाएं पुरुषों के वस्त्र में युध्द लड़ रहीं थी। उसने कहा की मुझपर यकीन नही तो खुद जाकर देख लो, की वे लोग दोनो अंजरियों से हांथ-मुंह धोती हैं जबकि पुरुष एक अंजरी से हांथ-मुंह धोते हैं।
आक्रमणकारियों ने फ़िर से किले पर आक्रमण किया, महिलाओं ने फ़िर से बहादुरी दिखाई इस बार सिंनकी दई की सेना ने दुश्मनों की सेना को सोन नदी के उसपार खदेड़ दिया,लौटते समय महिला सेना ने नदी में हांथ-मुह धोये,लुंधरी ने जैसा बताया था चेरो की सेना को पता चल गया की इस सेना में महिलायें हैं। अब चेरो की सेना ने दुबारा आक्रमण किया यह तीसरा आक्रमण था इस बार दुश्मन सेना ने दुगनी ताकत के साथ हमला किया, सिंनगी दई की सेना थक चुकी थी,फ़िर भी सिंनगी दई ने हार नही मानी,किले के चारो ओर जहां से दुश्मन की सेना प्रवेश कर सकती थी वहां पत्ते,लकड़ी,मिर्च,गोबर जला कर धुंआ किया, जिससे कुछ छणों के ले दुश्मन सेना को रोक लिया, शत्रु की सेना जब धुंए से परेशान हो गई तब इस समय का फ़ायदा उठा कर सिंनगी दई ने बच्चे,बुर्जुग एवं महिलाओं को लेकर पिछले दरवाजे से घनघोर जंगल में छिपते-छिपाते ले हईं, उन्हे एक विशाल करम का पेड़ दिखाई दिया उसके नीचे चट्टान में गुफ़ा जैसा कुछ था उसमें सब छुप गये। इसके बाद चेरो राजा ने किले पर कब्जा कर लिया, सिंनगी दई ने जो भी उनके साथ उरांव लोग थे उनको लेकर शेर घाटी के रास्ते छोटा नागपुर ले आईं फ़िर वे लोग छोटा नागपुर में बस गये, यहां पहले से मुण्डा जनजाति के लोग बसे हुये थे।
“इसी घटना को याद करते हुये उरांव जाति के लोग जनी शिकार मनाते हैं जिसे “मुक्का सिंदरा” भी कहा जाता है।”

FAQ-
Q- ‘कहानी रोहतासगढ़ की’ के के लेखक कौन हैं?
Ans- डाॅ.फ़्रान्सिस्का कुजूर।
Q- रोहतासगढ़ कहाँ है?
Ans- रोहतासगढ़ आज बिहार राज्य में हैं।
Q- रोहतासगढ़ में किसका शासन था?
Ans- रोहतासगढ़ में राजा रोइतास का शासन था,वहां की राजकुमारी थी सिंनगी दई।
Q- .उरांव जनजाति किस किस सभ्यता से सम्बंधित हैं?
Ans- .उरांव जनजाति किस हड़प्पा/ सिंधु घाटी सभ्यता से सम्बन्ध रखते हैं?
Q- राहतगढ़ का किला किस पत्थर से बना है?
Ans- इन पत्थरों को सुर्खी चूना और उरद को पीस कर बनाया गया था।
Q- .उरांव लोगों पर किसने हमला किया और रोहतासगढ़ के किले पर कब्ज़ा किया?
Ans- पलामों के चेरो राजा ने?
Q- उरांव लोगों का मुख्य त्यौहार क्या है?
Ans- इनके प्रमुख त्यौहार सरहुल (Sarhul), करम ( karam )धनबुन,नयाखानी,खरियनी आदि हैं।
Note- ये सभी जानकारियाँ(Information) इंटरनेट(Internet) से ली गईं हैं, अगर कोइ जानकारी गलत लगे तो आप हमें कमेंट(Comment) कर सकते हैं,हम इसे अपडेट करते रहेंगे। आपको हमारी आर्टिकल अच्छी लगती हैं तो आगे भी पड़ते रहें और इसे शेयर(share) करें।