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PRACHIN BHARAT MEIN UCHCH SHIKSHA|प्राचीन भारत में उच्च शिक्षा| HIGHER EDUCATION

Posted on September 30, 2024 By Deepti

PRACHEEN BHARAT

Contents –

1. परिचय
2. गुरुकुल पद्धति ( Gurukul )
3. तक्षशिला विश्वविद्धालय ( Takshshila University )
4. नालंदा विश्वविद्धालय ( Nalanda University )
5. विक्रमशिला विश्वविद्धालय ( Vikrmshila University )
6. ओदंतपुरी विश्वविद्धालय ( Odantpuri/Udantpuri University )
7. वल्लभी विश्वविद्धालय ( Vallabhi University )
8. विक्रमपुर विहार विश्वविद्धालय ( Vikrampur vihaar/University )
9. जगदल विहार/ विश्वविद्धालय ( Jgdal vihar/ University )
10. रत्नागिरी महविद्यालय (Ratnagiri vihar )
11. सोमपुरा विहार विश्वविधालय ( Sompura vihar/University )
12. पहाड़पुरा विहार/ विश्वविद्धालय ( pahadpura Vihar/University )

1. परिचय –

प्राचीन भारत में सर्वप्रथम वैदिक काल, उत्तर वैदिक काल में शिक्षा पद्धति गुरुकुल पद्धति ( आश्रम शिक्षा ) थी।

2. गुरुकुल पद्धति ( Gurukul ) –

छात्र एक समान एवं सभी गुरु के पास रहकर विद्यायन/अध्ययन करते थे। प्राचीन काल में 16 संस्कार प्रचलित हुए और प्रचीन काल की शिक्षा को सस्कारों से जोड़ा गया।

शिक्षा की समाप्ति पर समावर्तन संस्कार किया जाता था, इसके बाद विधार्थी स्नातक ( Snaatak ) कहलाता था। स्नातक का अर्थ होता है “ज्ञान रुपी गंगा में नहाया हुआ व्यक्ति।”

600 BC भारत में महाजनपद काल का है। ऐतिहासिक काल तक आते – आते भारत में अच्छे विश्वविधालय ( University ) स्थापित हो चुके थे।

3. तक्षशिला विश्वविधालय ( Takshshila University ) –

स्थापना – 600 BC

संस्थापक – भरत द्वारा, इन्होने यहाँ का प्रशासक तक्ष नमक व्यक्ति को बनाया इसलिए इस विश्व विधालय का नाम तक्षशिला पड़ गया। तक्ष भरत के ही पुत्र थे।

* स्थान – वर्तमान पाकिस्तान के रावलपिंडी जिले में स्थित है ( सिंधु एवं झेलम नदियों के बीच ).

* फाह्यान और ह्वेनसांग दो चीनी यात्री थे, जो तक्षशिला आये थे। फाह्यान 400 ईस्वी में और ह्वेनसांग 630-643 ईस्वी में तक्षशिला आये थे।

* तक्षशिला में एक सबसे प्रमुख स्तूप था जिसे “धर्मराजिका स्तूप ” कहा जाता है।

* तक्षशिला में शिक्षा लेने का अधिकार केवल द्विज को था। द्विज का अर्थ होता था ब्राह्मण और क्षत्रिय।

* मौर्य काल के चाणक्य/कौटिल्य ने भी यहाँ भेष/वेश बदलकर शिक्षा प्राप्त की थी।

* भारत का प्रथम व्यवस्थित एवं प्राचीनतम शिक्षा केंद्र था।

* यहाँ तर्कशास्त्र, गणित, धर्म, चिकित्सा, ज्योतिष, वेद, युद्ध कौशल एवं विज्ञान की शिक्षा प्रदान की जाती थी।

* हूणों के शासक तोरमाण ने विश्वविधालय को नष्ट कर दिया जिससे इसकी ख्याति धूमिल गई बाद में 712 ईस्वी में मोहम्मद बिन कासिम ने अपने अभियायान में इसे पूर्णतः नष्ट कर दिया।

* शिक्षा का माध्यम संस्कृत भाषा थी। ब्राह्मी एवं खरोष्ठी दो लिपियाँ प्रचलित थीं।

* कौशल नरेश प्रसेनजीत ने भी यहाँ शिक्षा प्राप्त की थी।

* कुछ विशेष बातें :

*1980 ईस्वी में तक्षशिला को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया। वर्तमान के अवशेष तीन शहरों में विभाजित हैं – हाथल, सीकर्स, सिसुर्ख़। ( हाथल 6 BC-2BC , सिकाररश ग्रीक बैक्टीरियन )

4. नालंदा विश्वविधालय ( Nalanda University ) –

स्थान – बड़गांव ( राजगिरि ) , बिहार

यह स्थान महात्मा बुद्ध के प्रिय शिष्य सारिपुत्र की जन्म भूमि है।

* संस्थापक – कुमारगुप्त ( उपाधि – महेन्द्रदित्य ) .

नालंदा को महायान शाखा का ऑक्सफ़ोर्ड ( Oxford ) कहा जाता है।

* चीनी यात्री ह्वेनसांग ने इसका संस्थापक शक्रादित्य को बताया।

* ह्वेनसांग जब नालंदा विश्व विधालय आये थे, तब वहां 8 बौद्ध विहार/ महाविधालय थे।

* इनका निर्माण श्रीलंका के शासक बालपुत्र देव द्वारा करवाया गया ( 8 बौद्ध विहार/ महाविधालय का निर्माण ).

* चीनी यात्री इत्सिंग ने अपनी किताब में बताया की इसमें 8 बड़े कक्ष बने थे, 18 बड़े कमरे और 309 छोटे कमरे बने थे। इन 18 बड़े कमरों में व्याख्यान दिया जाता था इसे आप हॉल कह सकते हैं इतना विशाल।

* ह्वेनसांग ने अपनी पुस्तक में यहां विशाल पुस्तकालय ( Library ) जो 9 मंजिला था का उल्लेख किया है। इस पुस्तकालय का नाम धर्मगंज था।

* इस पुस्तकालय के तीन भाग थे – (i). रत्नसागर (ii). रत्नोदधदी (iii). रत्नरंजक

* ह्वेनसांग के अनुसार यहाँ 8500 विधार्थी, और 1510 शिक्षक थे। इत्सिंग के विवरण के अनुसार यहाँ 3000 छात्र पड़ते थे, एक और विद्वान ह्वीली के अनुसार 10,000 छात्र थे।

* जबकि राजा हर्ष के समय यहाँ 10,000 छात्र अध्ययन रतथे।

* ह्वेनसांग के अनुसार यहाँ चीन, तिब्बत, कोरिया, जापान, मंगोलिया, श्रीलंका आदि देशों के छात्र अध्ययन करते थे, अर्थात उन्होंने 26 विदेशी विधार्थियों का उल्लेख किया है।

* जबकि इत्सिंग ने कोरिया के दो विधर्थियों के होने की बात कही है। उनके नाम – नीह और आर्यवर्मन बताये। इत्सिंग के अनुसार इस विश्व विधालय को यहाँ के 200 गावं से दान मिलता था।

* प्रवेश केवल उन्ही छात्रों को मिलता था जो द्वार पंडित के द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब देने में सफल होते थे। पंडित के द्वारा पूछे गए सवाल न्याय, व्याकरण और अधिधम्म कोश से होते थे, इन तीन विषयों का ज्ञान होना आवश्यक था तभी विधालय में प्रवेश मिलता था।

* ह्वेनसांग के अनुसार 100 में से मुश्किल से 20 व्यीक्ति व्यक्तियों ( छात्रों ) को ही प्रवेश मिलता था।

* प्रसिद्ध आचार्य – नागार्जुन, शीलभद्र, वसुमित्र, जिनमित्र, चंद्रपाल, गुणमित्र, प्रभाकर मित्र ( दुसरे कुलपति ), असंग, आर्यदेव, धर्मपाल आदि।

* आचार्यों की विशेषताएं –

(i). धर्मपाल – तमिल के कुलीन ( कांची )

(ii). शीलभद्र – नालंदा के कुलपति ( ह्वेनसांग के गुरु )

(iii). चन्द्रगोमिन – चंद्र व्याकरण के रचयिता ( ये तिब्बत जाने वाले पहले विद्वान् थे )

(iv). शांति रक्षित – 8 वीं शताब्दी में तिब्बत के राजा खो – खो ने इन्हे आमंत्रित किया था। इनकी सहायता पदम् संभव ने की थी, अतः ये तिब्बत जाने वाले दुसरे विद्वान थे।

* हर्षवर्धन के समय इस विष विधालय ने अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर ली थी। इसी समय ह्वेनसांग यहाँ आया इसके बाद इत्सिंग यहाँ आया, 10 वर्ष तक अध्ययन किया और लौटते समय 400 संस्कृत ग्रंथ अपने साथ ले गया।

* 7 वे शताब्दी में तिब्बत के राजा सांग सेंग गम्पो ने अपने एक मंत्री थानवी को नालंदा शिक्षा प्राप्त करने भेजा था।

* इसके शीलभद्र और प्रभाकर मित्र दो प्रसिद्ध कुलपति रहे।

* इस महाविधालय का प्रमुख स्तूप सारिपुत्र है

* इत्सिंग के अनुसार इस विधालय का दूसरा नाम ‘मृगशिखावन’ था।

* नालंदा के अंतिम शासक शाक्य श्री भद्र थे जो 1204 ईस्वी में तिब्बत चले गए।

* इनके बाद तिब्बत जाने वाले विद्वान् कमलशील और स्थारमाती थे। अन्य विद्वान् जो तिब्बत चले गए उनके नाम हैं –

चंद्रपाल, गुणमति, प्रभाकर मित्र, जिनमित्र और आतिश।

* 1193 ईस्वी में मुहम्मद गोरी के सेनापति बख्तियार खिलजी ने इस पर आक्रमण किया और इसे नष्ट किया। इस बात का उल्लेख मिन्हाज – उस – सिराज ने अपनी किताब ‘तबकात – ए – नासिरी’ में किया है।

नोट – मैंने अपने दुसरे पोस्ट (post) पर नालंदा के नष्ट होने के बारे में फैक्ट ( fact ) बताया है, लेकिन इतिहास की किताब में ऐसा ही लिखा गया है। परीक्षाओं ( Examination )में किताब के अनुसार ही उत्तर ( Answer ) देना होगा इसलिए मैं उसी के अनुसार यहाँ लिख रही हूँ। आपको मैं यहाँ मेरे दुसरे पोस्ट का लिंक दे रही हूँ आप वहां जाकर पढ़ सकते हैं।

Did Bakhtiyar khilji burnt and destroy Nalanda University?|क्या बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविधालय को जलाकर नष्ट किया था?

* 1880 ईस्वी में A. कनिंगघम ने इस विश्वविधालय के अवशेषों को खोजा था, इन्होने यहाँ ह्वेनसांग की प्रतिमा लगी हुई पायी थी।

* इस विश्व विधालय को पुनर्जीवित करने का विचार पूर्व राष्ट्रपति A.P.J. अब्दुल ललाम एवं आमात्य सेन का था। परन्तु वर्त्तमान में 19 जून 20244 में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस विश्वविधालय के नवीन परिसर का उद्घाटन ( Inaugration ) किया गया।

* 15 जुलाई 2016 को इस विश्वविधालय को यूनेस्को ( UNESCO ) ने विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया।

5. विक्रमशिला विश्वविधालय ( Vikrmshila University ) –

स्थान – भागलपुर, बिहार

संस्थापक – पाल वंश ( धर्मपाल ने 8 वीं शताब्दी में की )

* यह विश्वविधालय पठारघाट नामक पहाड़ी पर गंगा नदी के दाहिने तट पर स्थित है। ( बिहार एवं बंगाल के सीमावर्ती क्षेत्र में )

* यहाँ विश्वविधालय से सम्बंधित आचार्य को द्वार पंडित कहा जाता था।

* यहाँ भी नालंदा विश्व विधालय की तरह प्रवेश परीक्षा के आधार पर ही प्रवेश मिलता था। डिग्री पूरी करने पर दीक्षांत समारोह ( ) में स्नातक की उपाधि दी जाती थी।

* उपाधि ( degree ) देने का अधिकार कुलपति या पाल वंशीय शासक को होता था।

* इस विष विधालय में कुछ 6 महाविधालय थे जिनका संचालन एक परिषद् के माध्यम से होता था।

* प्रत्येक महाविधालय में 108 शिक्षक और एक केंद्रीय कक्ष होता था, अर्थात कुल 648 शिक्षक कार्यरत थे।

* इसमें केंद्रीय भवन होता था उसे विज्ञान भवन की संज्ञा दी जाती थी।

* नालंदा विश्वविधालय की भांति यहाँ भी प्रवेश परीक्षा में द्वार पंडितों द्वारा प्रश्न पूछे जाने का नियम था। प्रश्न पूछने के बाद ही छात्रों को प्रवेश मिलता था।

* द्वार द्वार पंडित

(i) पूर्व द्वार – आचार्य रत्नाकर शांति

(ii) पश्चिमी द्वार – आचार्य वागेश्वर कीर्ति वाराणसेय

(iii) उत्तरी द्वार – आचार्य नरोप

(iv) दक्षिणी द्वार – प्रज्ञाकरमति

(v) प्रथम केंद्रीय द्वार – रत्नवज्र ( कश्मीरी थे )

(vi) द्वितीय केंद्र – आचार्य ज्ञान श्री मित्र ( गौडीय थे )

* यह बौद्ध धर्म की वज्रयान शाखा के लिए प्रसिद्ध था, 10 वीं शताब्दी के इतिहासकार तारानाथ ने इसका उल्लेख किया है।

* यहाँ के आचार्यों में सबसे प्रसिद्ध दीपांकर श्री ज्ञान थे। ये विक्रमशिला विश्वविधालय के कुलपति थे, और ये हीनयान, महायान, वैशेषिक, तर्कशात्र के ज्ञान के साथ – साथ ये प्रसिद्ध तिब्बती बौद्ध लेखक भी थे।

* 11 वीं शताब्दी में तिब्बती नरेश चुनचुन के निमंत्रण पर दीपांकर श्री ज्ञान तिब्बत गए, जहाँ उन्होंने टीबाति बौद्ध धर्म सुधारणा कार्यक्रम चलाया।

* तिब्बती बौद्ध साहित्यकारानुसार दीपांकर श्री ने 200 बौद्ध ग्रंथों की रचना की थी।

* इनके बाद 12 वीं शताब्दी में नये आचार्य के पद पर अभयंकर गुप्त थे। ये तंत्रवाद के लिए प्रसिद्ध थे। इन्होने तिब्बती, संस्कृत भाषा में कई ग्रंथों की रचना की।

अन्य विद्वान् – ज्ञानपाद, बेरोचन, रक्षित, रत्नाकार, जैतारी, शांति, ज्ञान श्री, श्री मित्र, रत्नगत, रक्षित आदि।

* 12 वीं शताब्दी में यहाँ लगभग 3000 विधार्थी अध्ययनरत थे।

* तिब्बती स्त्रोत कहते हैं विद्वान् रत्नव्र्ज और जेतारी को स्नातक की उपाधियाँ पाल राजाओं द्वारा गई गयी थी। राजा महिपाल और राजा कनक द्वारा।

* सभी स्नातकों को पंडित की उपाधि दी जाती थी।

* पंडित की उपाधि के बाद महापंडित — उपाध्याय — आचार्य ये क्रमशः उच्चतर उपाधि थी।

* विदेशी विधार्थियों में यहाँ सर्वाधिक तिब्बत के विधार्थी।

* 1203 में यहाँ के आचार्य श्री गह थे इनके समय बख्तियार खिलजी ने इस विश्व विधालय को जला दिया। इस समय यहाँ के कुलपति शाक्य श्री भद्र थे।

6. ओदंतपुरी/उदंतपुरी विश्वविधालय ( Odantpuri/Udantpuri University ) –

संस्थापक – पाल वंश के शासक धर्मपाल

* स्थान – वर्तमान के बिहार के नालंदा जिले का मुख्यालय मन जाता है।

* यह विश्वविधालय बौद्ध धर्म से सम्बन्धित था।

* प्रसिद्ध विद्वान – आतिश, दीपांकर, परभरकर मित्र थे।

* इस विश्वविधालय के छात्रों ने 1203 ईस्वी में बख्तियार खिलजी की सेना का मुकाबला किया था परन्तु वे असफल रहे और खिलजी द्वारा इसे 1203 में नष्ट कर दिया गया

* इस विश्वविधालय का योगदान तिब्बत में बौद्ध धर्म के प्रचार – प्रसार में रहा था।

7. वल्लभी विश्वविधालय ( Vallabhi University ) –

स्थान – बसावला, गुजरात

संस्थापक – ध्रुवसेन I- की बहन की पुत्री दददा ने प्रथम विहार का निर्माण कराया था। दूसरा विहार 580 ईस्वी में राजा धरसेन के द्वारा बनवाया गया।

* वललभी 3री शताब्दी में स्थापित मैत्रिक वंशी शासकों की राजधानी थी, स्थापना भट्टारक ने की थी।

* यह विश्वविधालय बौद्ध धर्म के हीनयान शाखा से सम्बंधित था।

* यहाँ पर बिहार एवं बंगाल से विधार्थी अध्ययन हेतु आते थे, तथा इन्हे अंतर्वेदिक कहते थे।

* इत्सिंग ने यहां 100 विहार बताये हैं, जिनमें 6000 छात्र अध्ययनरत थे।

* यहां के प्रमुख आचार्य स्थिरमति और गुणमति थे।

* वललभी विश्वविधालय इस समय अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का भी प्रमुख केंद्र था अतः पश्चिमी एवं दक्षिणी एशिया से व्यापारिक मार्गों द्वारा जुड़े रहने के कारण यह स्थान अनेक संस्कृतियों का सम्बन्ध स्थल बन गया।

* इस विधालय का अन्य नाम श्री वप्पापाद था।

* मुहम्मद गोरी ने अपने आक्रमणों के दौरान इस वि वि को नष्ट कर दिया था।

8. विक्रमपुर विहार विश्वविधालय ( Vikrampur vihaar/University ) –

स्थिति – वर्तमान में बांग्लादेश की राजधानी ढाका से 13 मील दूर मुंशीगंज जिले में रघुरामपुर गावं में स्थित है।

* विक्रमपुर बंगाल की सबसे पुरानी राजधानी थी, इसका उल्लेख वेदों में भी मिलता है।

* उत्खनन के आधार पर यहाँ से अबतक लगभग 100 मूर्तियां प्राप्त हुईं है।

* इस आधार पर ऐसा माना जा सकता है की धर्मपाल, पाल शासक ने अपने साम्राज्य में लगभग 30 महाविहारों की स्थापना करवाई थी, जिसमें से एक यह भी था.

* इस महाविहार का संबंद्ध दीपनकार श्री आतिश से है।

* दीपांकर श्री का जन्म मुंशीगंज जिले में ही वज्रयोगिनी नामक गावं में हुआ था।

* दीपांकर श्री ज्ञान आतिश के समय यह प्रसिद्ध बौद्ध शिक्षा केंद्र था। नेपाल, चीन, तिब्बत, थाईलैंड आदि के साथ लगभग 8000 विद्यार्थी अध्ययनरत थे।

* इन विहारों/ वि वि के अलावा प्राचीन भारत में कई प्रमुख नगर भी शिक्षा के केंद्र हुआ करते करते थे –

नागार्जुनकोंडा, अमरावती, काम्पिल्य, कश्मीर, कांचीपुरम, पुष्कलावती , काशी, उज्जयनी आदि प्रमुख शिक्षा केंद्र थे।

परन्तु इनमें आधुनिक विश्वविद्धालयों जैसे प्रमाण नहीं मिलते।

9. जगदल विहार/विश्वविधालय ( Jgdal vihar/ University ) –

संस्थापक – पाल शासक रामपाल ने 1077-1129 ईस्वी में निर्माण करवाया

* पाल शासकों द्वारा किया गया सबसे बड़ा निर्माण कार्य जगदल महाविहार का निर्माण कार्य था।

* यह विहार गंगा एवं उसकी सहायक नदी करतोया के संगम पर स्थित है।

* समकालीन महान पाल दरबारी कवि संध्याकार नन्दिन ने अपने ग्रंथ में जगदल महाविहार का वर्णन किया है।

* इस समय के तिब्बती बौद्ध ग्रंथ पांच सुप्रसिद्ध महाविहारों का वर्णन करते हैं –

नालंदा, विक्रमशिला, सोमपुर, ओदंतपुरी, जगदल महाविहार।

* जगदल महाविहार बौद्ध धर्म के तंत्रयान विद्या का केंद्र था।

* यह विधापीठ भगवान् बुद्ध को समर्पित था।

* यह विद्धालय नालंदा की परंपरा पर आधारित था।

* प्रसिद्ध कश्मीरी विद्वान शाक्य श्री भद्र, जो नालंदा के अंतिम प्रसिद्ध विद्वान थे, ये सोमपुरी, विक्रमशिला एवं ओदंतपुरी के नष्ट होने के बाद इन्होने जगदल महाविहार में प्रवेश किया था.

* शाक्य श्री भद्र 7 वर्ष इस महाविहार में रहे बाद में मुस्लिम आक्रमण के भय से ये 1207 ईस्वी में तिब्बत चले गए।

* शाक्य श्री भद्र को बौद्ध धर्म की तंत्रयान शाखा का तिब्बत में प्रसार का श्रेय दिया जाता है।

* शाक्य श्री के एक शिष्य दानशील ने 10 पुस्तकों का तिब्बती में अनुवाद किया था।

* शाक्य श्री के आलावा यहाँ के प्रसिद्ध आचार्यों में मोक्षकार गुप्त एवं प्रभाकर गुप्त के नाम उल्लेखनीय है.

* विभूति चंद्र एवं दानशील यहाँ के दो प्रसिद्ध तांत्रिक विद्वान् थे।

* 12 वीं शताब्दी में नालंदा एवं अन्य विहारों की भांति महाविहार भी मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा नष्ट किया गया।

* इतिहासकार सुकुमार दत्त ने इस विहार के नष्ट होने का समय 1207 ईस्वी निर्धारित किया है. इस आधार पर हम यह कह सकते हैं की मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट किये जाने वाला यह अंतिम महाविहार/विश्वविधालय था।

10. रत्नागिरी महविद्यालय (Ratnagiri vihar ) –

स्थान – महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में है, यह बाल गंगाधर तिलक की जन्म स्थल के रूप में प्रसिद्ध है।

* रत्नगिरी आम की अल्फांसो प्रजाति के लिए भी प्रसिद्ध है।

11. सोमपुरा विहार विश्वविधालय ( Sompura vihar/University ) –

* पाल युग में बंगाल का प्रमुख बौद्ध शिक्षा केंद्र था।

* इसकी पहचान वर्तमान के बांग्लादेश के नवपुर जिले में पहाड़पुर से की जाती है।

* सोमपुर विहार की स्थापना – धर्मपाल ने की थी।

* यह नालंदा एवं अन्य महाविहारों की तर्ज पर आधारित था।

* 1985 ईस्वी में यूनेस्को ने इसे विश्व विरासत स्थल घोषित किया है।

* नालंदा के समान यहाँ से टेराकोटा अभिलेख प्राप्त होता है।

* यह महाविहार भी अन्य महविहारों की भांति मुस्लिम आक्रमण के कारण नष्ट हुआ।

12. पहाड़पुरा विहार/ विश्वविधालय ( pahadpura Vihar/University ) –

सस्थापक – पाल वंश के शासक धर्मपाल ने निर्माण कराया था 819 ईस्वी में।

* इस विहार के पास हालूद विहार और सीताकोट विहार संसार के सबसे बड़े बौद्ध विहार है।

* आकार में इसकी तुलना नालंदा विहार से की जाती यहाँ भी अन्य देशों से विधार्थी अध्ययन करने आते थे।

* 10 वीं शताब्दी में आचार्य आतिश दीपांकर यहाँ के प्रसिद्ध आचार्य थे।

FAQ –

Q. प्राचीन भारत में कैसी शिक्षा पद्धति थी?

Ans. प्राचीन भारत में सर्वप्रथम वैदिक काल, उत्तर वैदिक काल में शिक्षा पद्धति गुरुकुल पद्धति ( आश्रम शिक्षा ) थी।

Q. स्नातक का क्या अर्थ होता है?

Ans. स्नातक का अर्थ होता है “ज्ञान रुपी गंगा में नहाया हुआ व्यक्ति।”

Q. प्राचीन काल में कितने संस्कार प्रचलित हुए?

Ans. प्राचीन काल में 16 संस्कार प्रचलित हुए और प्रचीन काल की शिक्षा को सस्कारों से जोड़ा गया।

Q. पाल वंश के शासक धर्मपाल ने कौन – कौन से विहार/ विश्वविधालय का निर्माण करवाया था?

Ans. पाल वंश के शासक धर्मपाल ने सोमपुर विहार, पहाड़पुर विहार का निर्माण करवाया था।

Q. पाल वंश के शासक धर्मपाल ने कितने विहार/विश्वविद्धालय का निर्माण करवाया था?

Ans.- पाल शासक धर्मपाल ने अपने साम्राज्य में लगभग 30 महाविहारों की स्थापना करवाई थी।

Q. मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट किये जाने वाला यह अंतिम महाविहार/विश्वविधालय कौन सा था।

Ans.- इतिहासकार सुकुमार दत्त ने इस विहार के नष्ट होने का समय 1207 ईस्वी निर्धारित किया है. इस आधार पर हम यह कह सकते हैं की मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट किये जाने वाला यह अंतिम महाविहार/विश्वविधालय था।

Q. तक्षशिला कौन – कौन से चीनी यात्री यात्री आये थे? कब आये थे।

Ans.- फाह्यान और ह्वेनसांग दो चीनी यात्री थे, जो तक्षशिला आये थे। फाह्यान 400 ईस्वी में और ह्वेनसांग 630-643 ईस्वी में तक्षशिला आये थे।

Q. भारत का प्रथम व्यवस्थित एवं प्राचीनतम शिक्षा केंद्र कौन सा था?

Ans. भारत का प्रथम व्यवस्थित एवं प्राचीनतम शिक्षा केंद्र था।

Q.- तक्षशिला विश्वविधालय कहाँ स्थित है?

Ans. वर्तमान पाकिस्तान के रावलपिंडी जिले में स्थित है ( सिंधु एवं झेलम नदियों के बीच ).

Q. प्राचीन भारत के किस विश्वविधालय को महायान शाखा का ऑक्सफ़ोर्ड ( Oxford ) कहा जाता है?

Ans. नालंदा को महायान शाखा का ऑक्सफ़ोर्ड ( Oxford ) कहा जाता है।

Q. प्राचीनकाल के किस विश्वविधालय का योगदान तिब्बत में बौद्ध धर्म के प्रचार – प्रसार में रहा था।

Ans. ओदंतपुरी/उदंतपुरी विश्वविधालय का योगदान तिब्बत में बौद्ध धर्म के प्रचार – प्रसार में रहा था।

Q. ह्वेनसांग के अनुसार नालंदा विश्वविधालय में किन – किन देशों के छात्र अध्ययन करते थे?

Ans. ह्वेनसांग के अनुसार यहाँ चीन, तिब्बत, कोरिया, जापान, मंगोलिया, श्रीलंका आदि देशों के छात्र अध्ययन करते थे?

Q. नालंदा विश्वविधालय के प्रसिद्ध आचार्यों के नाम?

Ans. नालंदा विश्वविधालय के प्रसिद्ध आचार्य – नागार्जुन, शीलभद्र, वसुमित्र, जिनमित्र, चंद्रपाल, गुणमित्र, प्रभाकर मित्र ( दुसरे कुलपति ), असंग, आर्यदेव, धर्मपाल आदि।

Q. नालंदा विश्वविधालय को यूनेस्को ( UNESCO ) ने विश्व धरोहर सूची में कब शामिल किया गया?

Ans. 15 जुलाई 2016 को नालंदा विश्वविधालय को यूनेस्को ( UNESCO ) ने विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया।

Q. इत्सिंग के अनुसार किस विहार/ महाविधालय का दूसरा नाम ‘मृगशिखावन’ था?

Ans. इत्सिंग के अनुसार नालंदा महाविधालय का दूसरा नाम ‘मृगशिखावन’ था।

Note- ये सभी जानकारियाँ(Information) इंटरनेट(Internet) से ली गईं हैं, अगर कोइ जानकारी गलत लगे तो आप हमें कमेंट(Comment) कर सकते हैं,हम इसे अपडेट करते रहेंगे। आपको हमारी आर्टिकल अच्छी लगती हैं तो आगे भी पड़ते रहें और इसे शेयर(share) करें।

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