
नालंदा एक बौध्द मठ्ठ ( Buddhist Monastery) थी। जिसे गुप्त वंश के शासक ने 6 वीं शताब्दी में बनवाया था, पुरातत्व सर्वेक्षण से शाबित हुआ है।
काफी समय से एक मिथक (myth) बानी हुई है और अभी के समय में काफी ट्रेंड कर रही है, क़ि खिलजी वंश के सुल्तान बख्तियार खिलजी ने नालंदा को जलाकर ख़त्म कर दिया। एक तारिख की भी बात की जाती है 1197 ईस्वी।
इतिहासकार रुचिका शर्मा ये बतातीं है की बख्तिआर खिलजी ने नालंदा को जलना तो दूर उसे हाँथ तक नहीं लगाया। कुछ स्त्रोतों की बात भी की जा रही है, जिसमे गलत कहानी बताई गई है।
1.यहाँ हम कुछ स्त्रोतों के बारे में बात करेंगे – (i).किताब ‘तबकात – ऐ – नासिरी (ii).धर्मस्वामिनी की किताब (iii). तारानाथ का मत 2. तो नालंदा को किसने जलाया? मान्य स्त्रोत/ ज्यादा करीब 3.क्या नालंदा अचानक ही जलकर नष्ट हो गई? |
1.यहाँ हम कुछ स्त्रोतों के बारे में बात करेंगे –
(i).किताब ‘तबकात – ऐ – नासिरी’ – इसे मिनहाजुद्दीन सिराज ने लिखी थी। मिनहाज एक काजी थे जो दिल्ली सल्तनत के सुल्तान इल्तुतमिश के दरबार (court ) में कार्यरत ( Employed ) हुए। तब से उन्होंने दिल्ली सल्तनत के बारे में किताब लिखना शुरू किया, यह किताब उन्होंने 1260 ईस्वी में पूरी की, और इसे उस समय के दिल्ली के सुल्तान नासिर को पेश किया। इस कारण इस किताब का नाम तबकाते नासिरी रखा जिसका अर्थ है जीवनी शब्दकोश ( Biographical dictionary ) .
मिनहाज ने लिखा है बख्तियार, मुहम्मद गोरी के दरबार में कार्यरत थे ( वही गोरी जिसने पृथ्वीराज चौहान को तराईन के युद्ध में हराया ता था) गोरी के दरबार को छोड़ कर मिनहाज भारत आये। दिल्ली आने पर उनको काम न मिलने पर वे बदायूं चले गए , जहाँ के इक़्तेदार ने उन्हें काम दिया, यहाँ कुछ समय काम करने के बाद उन्होंने अवध के रियासत ( Principality ) में काम किया।
यहाँ पर काम करते हुए उन्होंने ( बख्तियार ने ) बिहार के किले पर हमला किया, हमले का कारण धन लूटना था जो उस समय के शासक अपनी शक्ति और धन बढ़ाने के लिए किया करते थे। बिहार का किला लूटने पर उन्हें काफी किताबें मिली पूछने पर पता चला यह एक मदरसा है मतलब एक मठ्ठ , जिसे विहार कहते हैं, जहाँ बौद्ध भिक्षु ( buddhist monk ) रहते हैं।

मिनहाज ओदनंत विहार के बारे में बताते हैं जिसपर बख्तियार ने हमला किया था, उन्हें नहीं पता था यह विहार है उन्होंने इसे किला समझकर हमला किया था। मिनहाज को यह जानकारी बख्तियार के दो साथी निजाम और समसाम से 641 AH ( हिजरी कैलेंडर )में मिली।
ओदनंत एकऔर विहार था जो नालंदा से काफी दूर ओदनंतपुरी में स्तिथ था। यह एक नया बुद्ध विहार था जिसे पाल वंश के शासक ने बनवाया था। इस नए विहार के कारण नालंदा की लोकप्रियता ( Popularity ) काफी काम हो गई क्योंकि पाल वंश का पैसा अब ओदनंतपुरी को जाता था, नालंदा को नहीं। मिनहाज ने अपनी किताब में नालंदा का जिक्र ही नहीं किया है।

(ii). धर्मस्वामिनी की किताब –
ये एक तिब्बती भिक्षु ( monk) थे, जो भारत आये थे (1234 ईस्वी में ) वे भारत के बारे में काफी कुछ बताते हैं, लेकिन वे भी नालंदा को नष्ट करने के में बख्तिआर खिलजी के हाँथ होने की बात अपनी किताब में नहीं लिखते हैं।
मिनहाज और धर्मस्वामिनी दोनों की किताब में 1199 ईस्वी में बख्तियार खिलजी के नालंदा पर हमले की बात नहीं की है। नालंदा पर हमला 1234 ईस्वी में हुआ था और बख्तियार खिलजी की मृत्यु 1206 ईस्वी में हो चुकी थी बख्तियार को मरे 28 साल हो चुके थे।
(iii). तारानाथ का मत – ये भी बौद्ध भिक्षु थे जो कभी भारत नहीं आये थे। वे भी बख्तियार खिलजी को नालंदा विहार नष्ट करने वाला नहीं मानते।
इतिहासकार अल्टेकर बताते हैं अवध से बंगाल के रास्ते में सिर्फ ओदनंतपुरी थी नालंदा नहीं, इसलिए कहा जा सकता है बख्तियार खिलजी नालदा गए ही नहीं।
2. तो नालंदा को किसने जलाया? मान्य स्त्रोत/ ज्यादा करीब –
(i).तारानाथ की किताब जो की 17 वी शताब्दी की थी। श्रीनालेंद्र ने नालंदा को बनवाया और इसके उत्सव में एक भोज रखा इसमें दो ब्रह्मण भी जिसे वे तीर्थकर कहते हैं आये थे। ये तीर्थकर भिक्षा मांगने आये और कुछ श्रमणो ( बौद्ध भिक्षु ) ने उनपर पानी फेंक दिया इससे वे गुस्से से चले गए। उनमे से एक तीर्थकर ने ठान लिया इस अपमान का बदला लेंगे, उसने 12 साल की समाधी ली और सूर्य से सिद्धि प्राप्त की।
दोनों तीर्थकों ने यज्ञा किया और उसकी राख या चिंगारी नालंदा में फेंक दिया जिससे नालंदा जलना शुरू हो गया और 84 बौद्ध भिक्षु के केंद्र (Centres) जल गए और काफी किताबें जल गई जैसे – रत्नबोधि और रत्नसागर । नालंदा में विशाल पुस्तकालय था।
वे दोनों तीर्थकर ( ब्राह्मण ) आसम की तरफ भाग गए थे।
(ii). यही घटना एक और किताब में मिलती है जो 18 वीं शताब्दी में लिखी गई सुम्पा खान्पु के द्वारा, वे भी एक बौद्ध भिक्षु ही थे। और भी स्त्रोत नालंदा के जलने के बारे में बताते हैं इसमें लैंप से जलने की बात कही गई है, भिक्षुओं के द्वारा सावधानी नहीं बरतने के कारन भोजन गृह में आग लगना आम बात थी।
(iii). तुर्कियों के आने से पहले ही नालंदा आधी जलकर नष्ट हो चुकी थी। ( 103 ईस्वी में )
3.क्या नालंदा अचानक ही जलकर नष्ट हो गई?
पाटिल के अनुसार नालंदा का पतन ( dicline ) का सबसे बड़ा कारण था ओदंतपुरी, विक्रमशिला, सोमापुरी जैसे नए विहारों का बनना जो पाल वंश के शासक धर्मपाल और देवपाल II ने बनाये थे।
जो संरक्षण ( Patronage) नालंदा को मिलती थी अब वो इन नए विहारों को मिलने लगी जिससे नालंदा का पतन प्रारम्भ हो गया। क्योंकि कोई भी विहार को चलने के लिए संरक्षण की आवश्यकता होती है।
आर्य शर्मा कहते हैं उस समय के भिक्षुओं में भ्र्ष्टाचार आ गया था, वे विहार को मिलने धन अपने लिए रखने लगे थे। कुछ भिक्षु तांत्रिक अभ्यास ( tantrik practice) भी करने लगे थे। इन सब कारणों से नालंदा की लोकप्रियता या respect घटने लगी थी।

इन सबसे यह निष्कर्ष निकलता है की नालंदा का पतन समय – समय पर धीरे – धीरे हुआ, एक बार के हमले में नहीं जैसा की लोग मानते हैं।
FAQ –
Q.- नालंदा विहार क्या है?
Ans- बौद्ध नालंदा एक बौध्द मठ्ठ ( Buddhist Monastery) थी।
Q- नालंदा विहार किसने और कब बनवाया?
Ans- नालंदा गुप्त वंश के शासक ने 6 वीं शताब्दी में बनवाया था।
Q- ‘किताब ‘तबकात – ऐ – नासिरी’ किसके द्वारा लिखी गई?
Ans- इसे मिनहाजुद्दीन सिराज ने लिखी थी।
Q- नालंदा विहार को किसने जलाया?
Ans- दो तीर्थकों (ब्रह्मण )ने यज्ञा किया और उसकी राख या चिंगारी नालंदा में फेंक दिया जिससे नालंदा जलना शुरू हो गया ।
Q- क्या नालंदा एक बार में नष्ट हो गया था?
Ans- नहीं! समय के साथ धीरे-धीरे नष्ठ हुआ।
Q- धर्मस्वामिनी भारत कब आये थे?
Ans- एक तिब्बती भिक्षु ( monk) थे, जो 1234 ईस्वी में भारत आये थे।
Q- किस विहार पर बख्तियार खिलजी ने हमला किया था।
Ans- ओदनंत विहार पर बख्तियार ने हमला किया था।
Note- ये सभी जानकारियां (Information) हमने इतिहासकार रुचिका शर्मा के बताये स्त्रोतों (Source ) से लीं हैं । अगर कोइ जानकारी गलत लगे तो आप हमें कमेंट(Comment) कर सकते हैं,हम इसे अपडेट करते रहेंगे। आपको हमारी आर्टिकल अच्छी लगती हैं तो आगे भी पड़ते रहें और इसे शेयर(share) करें।
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