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Concept Of Teaching in Hindi|meaning of Teaching|शिक्षण की अवधारणा|अर्थ, प्रकृति, उद्देश्य, विशेषताएं और आधारभूत आवश्यकताएं

Posted on September 24, 2024September 24, 2024 By Deepti

Class Teaching

Contents –

1. शिक्षण का अर्थ ( meaning of Teaching )
2. शिक्षण की अवधारणा ( concept of Teaching )
3. शिक्षण की प्रकृति ( Nature of Teaching )
4. शिक्षण के उद्देश्य ( Objectives of teaching )
5. शिक्षण की विशेषताएं ( Characteristics of Teaching )
6. शिक्षण के प्रकार ( Types of Teaching )
7. शिक्षण के सूत्र ( Teaching Formula )
8. शिक्षण के सिद्धांत ( Principles Of Teaching )
9. शिक्षण की आधारभूत आवश्यकताएं ( Basic Requirements of Teaching )
10. शिक्षण के चार ( Variables in Teaching)
11. शिक्षण के कार्य ( Functions of Teaching )

1. शिक्षण का अर्थ ( meaning of Teaching ) –

शिक्षण मानवीय मूल्यों के विकास पर बल देता है, क्यूंकि यह एक सामाजिक प्रक्रिया है। शिक्षण में सबसे महत्वपूर्ण तत्व शिक्षण और विद्यार्थी के मध्य ‘प्रत्यक्ष वार्तालाप’ होता है। शिक्षण कोई मौलिक अवधारणा नहीं है, क्यूंकि यह सामाजिक व मानवीय कारकों से गतिशील एवं प्रभावित होता है। इस प्रक्रिया के अंतर्गत हम औपचारिक एवं अनौपचारिक रूप से अनुभवों को विस्तार देते हैं। शिक्षण को हमारे समाज में बदलाव लाने के लिए एक ‘विधालयी उपकरण’ कहा जाता है।

वर्त्तमान शैक्षिक परिवेश में शिक्षण का उद्देश्य सिर्फ रटना या बलपूर्वक ज्ञान को मष्तिष्क में बिठाना नहीं है, बल्कि विद्यार्थियों में अधिगम करके सीखने की गतिशीलता लाना भी है।

शिक्षण के मुख्यतः तीन पक्ष होते हैं, जो एक – दूसरे से घनिष्ठता के साथ जुड़े रहते हैं-

(i). शिक्षक (ii). विद्यार्थी (iii). पाठ्यक्रम

शिक्षण के द्वारा ही विद्यार्थी नवीन ज्ञान अर्जित करने में सफल होता है।

परिभाषाएं –

* B.O. स्मिथ – “अधिगम को अभिप्रेरित करने वाली क्रिया शिक्षण है।”

* N. L. पेज – “शिक्षण कला व विज्ञान दोनों है।”

कला : अनिभावों पर आधारित है।

विज्ञान : इसमें क्रमबद्धता पाई जाती है।

* क्लर्क – “विद्यार्थी के व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिए दी जाने वाली क्रिया शिक्षण है।”

2. शिक्षण की अवधारणा ( concept of Teaching ) –

* शिक्षण की सम्पूर्ण प्रक्रिया एक त्रिस्तरीय पद्धति होती है जिसके तीन घटक ( शिक्षक , विधार्थी एवं पाठ्यक्रम ) होते हैं। शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षक दूसरों को पढ़ाते ( teach ) है, प्रशिक्षित ( trained ) करते हैं या उन्हें अनुदेश ( Instruct ) देते है। ये सभी उन प्रक्रियाओं को संदर्भित करते हैं जो पढाये जा रहे लोगों की संज्ञानात्मक रचना ( किसी के मष्तिष्क में ज्ञान की संरचना ) में बदलाव लाने के लिए निष्पादित होते हैं। हालाँकि पढ़ाना, प्रशिक्षण और अनुदेशन अपने अर्थ में काफी भिन्न हैं।

* प्रशिक्षण में किसी व्यक्ति को किसी विशेष कार्य को करने के लिए तैयार करने की प्रक्रिया शामिल होती है। यह सीखने की प्रक्रिया का वर्णन करता है जिसे पूरा करने में कई साल लगते हैं। प्रशिक्षण में अपेक्षाकृत एक व्यवस्थित माध्यम से ज्ञान और कौशल से युक्त कोई व्यक्ति ज्ञान और कौशल को अन्य व्यक्तियों में हस्तांतरित करता है जो इसे नहीं जानते हैं।

3. शिक्षण की प्रकृति ( Nature of Teaching ) –

* शिक्षण एक त्रिध्रुवीय प्रक्रिया है

* शिक्षण कला तथा विज्ञान दोनों है

* शिक्षण अन्तः प्रक्रिया है

* शिक्षण निर्देशन की प्रक्रिया है

* शिक्षण सामाजिक तथा व्यावसायिक प्रक्रिया है

* शिक्षण सोध्देश्य प्रक्रिया है

* शिक्षण विकासात्मक प्रक्रिया है

* शिक्षण तार्किक प्रक्रिया है

* शिक्षण औपचारिक के साथ – साथ अनौपचारिक प्रक्रिया भी है

* शिक्षण उपचारात्मक प्रक्रिया है

* शिक्षण भाषाई प्रक्रिया है

* शिक्षण सतत प्रक्रिया है

4. शिक्षण के उद्देश्य ( Objectives of teaching ) –

* सामाजिक व मानवीय मूल्यों को विकसित करना

* शारीरिक व मानसिक विकास

* आध्यात्मिक व नैतिक विकास

* परिस्थिति से अनुकूलन

* शिक्षक के साथ – साथ सहपाठियों व विद्यालयी वातावरण के साथ सहभागिता

* जीवन को पूर्णता व व्यापकता प्रदान करना

* जीविकोपार्जन

* ज्ञान की संवृद्धि

* बौद्धिक व चरित्र निर्माण

* आपसी सहयोग व भ्रातृत्व की भावना का विकास

5. शिक्षण की विशेषताएं ( Characteristics of Teaching ) –

* प्रगतिशीलता

* विधार्थी – शिक्षक सहयोग

* विधार्थी – क्रियाशीलता की उपस्थिति

* संवेगात्मक स्थिरता की उपस्थिति

* प्रभावी नियोजन

* लोकतांत्रिक आदर्शों के अनुकूल

* उत्तम विधियों पर आधारित

* प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष कक्षा व्यवहार

* सहानुभूति एवं दया पर आधारित

* निर्देशात्मकता

* विधार्थी – शिक्षक घनिष्ठ सम्बन्ध

* निदानात्मक

* विधार्थियों के पूर्व ज्ञान का उपयोग

* अपेक्षित सूचनाओं का आदान – प्रदान शिक्षक, दार्शनिक एवं मित्र की भूमिका में

6. शिक्षण के प्रकार ( Types of Teaching ) –

शिक्षण को विभिन्न आधार पर वर्गीकृत किया गया है। प्रत्येक आधार पर शिक्षण के तीन प्रकार हैं –

(i). शासन व्यवस्था के आधार पर

* निरंकुश शिक्षण

* लोकतान्त्रिक प्रणाली का शिक्षण

* हस्तक्षेप रहित शिक्षण

(ii). अधिगम स्तर के आधार पर

* स्मृति स्तर पर शिक्षण

* अवबोध स्तर का शिक्षण

* विमर्शी स्तर का शिक्षण

(iii). शैक्षणिक प्रबंधन व्यवस्था के आधार पर

* औपचारिक शिक्षण

* अनौपचारिक शिक्षण

* निरोपचारिक शिक्षण

(iv). उद्धेशों के आधार पर

* ज्ञानात्मक शिक्षण

* भावनात्मक शिक्षण

* मनोगत्यात्मक शिक्षण

(v). शिक्षण स्वरूप के आधार पर

* वर्णात्मक

* निदानात्मक

* उपचारात्मक

(vi). क्रियाओं के आधार पर

* प्रस्तुतिकरण

* प्रदर्शन

* क्रिया

7. शिक्षण के सूत्र ( Teaching Formula ) –

शिक्षण प्रक्रिया में प्रभावी सम्प्रेषण के लिए एक शिक्षक को शिक्षण सूत्र का ज्ञान होना अनिवार्य है इसे निम्न रूपों में समझा जा सकता है –

* पूर्ण से अंश की ओर : यह शिक्षण सूत्र विषयवस्तु के सम्पूर्ण ढांचे की आधारभूत जानकारी देने के बाद ही उसके अंश पर शिक्षण को स्वीकार करता है।

* प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष की ओर : इसके अंतर्गत अप्रत्यक्ष विषयवस्तु की जानकारी के लिए स्थानीय वातावरण के प्रत्यक्ष उदाहरणों से अधिगम करवाने पर बल दिया जाता है।

* स्थूल से सूक्ष्म की ओर ( मूर्त से अमूर्त की और ) : अधिगम को इन्द्रियों की अनुभूति पर आधारित करने पर बल देता है।

* विश्लेषण से संश्लेषण की और ओर : विषयवस्तु को पहले इकाइयों में अधिगम करवाया जाता है। इसके बाद सामूहिक अधिगम करवाने पर बल दिया जाता है।

* ज्ञात से अज्ञात की और और ओर : शिक्षण को ज्ञात विषयवस्तु से जोड़ते हैं, फिर अज्ञात की ओर बढ़ाते हैं।

* सरल से जटिल/ कठिन की ओर : अधिगम का आधारभूत सूत्र है की विधार्थी पहले सरल बातों को समझता है, फिर कठिन बातों को। कुछ अन्य शिक्षण सूत्रों का प्रयोग भी शिक्षकों द्वारा किया जाता है।

8. शिक्षण के सिद्धांत ( Principles Of Teaching ) –

जेरोम ब्रूनर ने वर्ष 1963 में शिक्षण सिद्धांत का सर्वप्रथम प्रयोग किया। शिक्षण सिद्धांत के विभिन्न चरण, जो शिक्षक द्वारा प्रयोग किये जाते हैं –

* अभिप्रेरणा का सिद्धांत

* उद्धेश्यों के निर्धारण का सिद्धांत

* रुचि का सिद्धांत

* अभ्यास/पुनरावृत्ति का सिद्धांत

* समन्वय का सिद्धांत

* मनोरंजन शिक्षण का सिद्धांत

* स्तरानुकूल शिक्षण का सिद्धांत

* साहचर्य का सिद्धांत

9. शिक्षण की आधारभूत आवश्यकताएं ( Basic Requirements of Teaching ) –

शिक्षण एक सामूहिक प्रक्रिया होती है, जिसमें विधार्थी और शिक्षक दोनों अपने – अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं। शिक्षण की आधारभूत आवश्यकता का केंद्रबिंदु अधिगम है। शिक्षण प्रक्रिया जब तक अपूर्ण रहेगी, जब तक अधिगम नहीं होगा। इस तथ्य की रायबर्न ने भी रेखांकित किया है। उन्होंने शिक्षण को त्रिध्रुवीय प्रक्रिया कहा है।

त्रिध्रुवीय प्रक्रिया

10. शिक्षण के चार ( Variables in Teaching ) –

शिक्षण के तीन चर हैं –

(i). शिक्षण ( स्वतंत्र चर ) –

शैक्षिक प्रक्रिया का आधारभूत तत्व शिक्षक ही होता है। शिक्षण प्रक्रिया को पूर्ण करने के लिए इसकी उपस्थिति अनिवार्य है। विधार्थियों को उनके उद्धेश्यों को प्राप्त करने में सहायता करता है।

(ii). विधार्थी ( परतंत्र चर ) –

शिक्षण प्रक्रिया विधार्थियों की उपस्थिति के बिना संभव नहीं। विधार्थी, शिक्षक व पाठ्यक्रम के बीच सेतु का काम करता है।

(iii). पाठ्यक्रम ( हस्तक्षेप चर ) –

विधार्थियों को क्या पढ़ाना और क्या सीखना है, इन सभी बातों का निर्धारण पाठ्यक्रम से ही होता है। विधार्थियों के मध्य पाठ्यक्रम ही वह साधन है, जिसके माध्यम से उन्हें शिक्षा दी जाती है।

11. शिक्षण के कार्य ( Functions of Teaching ) –

शिक्षण प्रक्रिया में स्वतंत्र और परतंत्र चरों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इन चरों के द्वारा निन्मलिखित कार्य संचालित किया जाता है –

* निदानात्मक कार्य ( Diagnostic Function ) –

इस कार्य के अंतर्गत विधार्थी की समस्त परिस्थितियों का अवलोकन करके विशिष्ट प्रभावों पर ध्यान दिया जाता है।

* उपचारात्मक कार्य ( Therapeutic Function ) – इसके अंतर्गत विधार्थियों की कठिनाईयों का सामूहिक रूप से निवारण किया जाता है।

* मूल्यांकन कार्य ( Evaluation Function ) – मूल्यांकन के आभाव में शिक्षण कार्य अपने उद्धेश्य में सफल नहीं होता। अतः यह शिक्षण का आधार घटक है।

मूल्यांकन कार्य ( Evaluation Function )

FAQ :

Q.- शिक्षण के मुख्यतः कितने पक्ष होते हैं?

Ans.- शिक्षण के मुख्यतः तीन पक्ष होते हैं, जो एक – दूसरे से घनिष्ठता के साथ जुड़े रहते हैं – (i). शिक्षक (ii). विद्यार्थी (iii). पाठ्यक्रम।

Q.- किसने शिक्षण को त्रिध्रुवीय प्रक्रिया कहा है?

Ans.- रायबर्न ने शिक्षण को त्रिध्रुवीय प्रक्रिया कहा है।

Q. शिक्षण के कितने चर हैं?

Ans. शिक्षण के तीन चर हैं – शिक्षण ( स्वतंत्र चर ),विधार्थी ( परतंत्र चर),पाठ्यक्रम ( हस्तक्षेप चर ) .

Q. शिक्षण के कितने प्रकार हैं ?

Ans. शिक्षण को विभिन्न आधार पर वर्गीकृत किया गया है। प्रत्येक आधार पर शिक्षण के तीन प्रकार हैं।

Q. “अधिगम को अभिप्रेरित करने वाली क्रिया शिक्षण है।” किसके द्वारा दी गई परिभाषा है?

Ans. B.O. स्मिथ द्वारा दी गई परिभाषा है।

Q.- किसने शिक्षण सिद्धांत का सर्वप्रथम प्रयोग किया?

Ans.- जेरोम ब्रूनर ने वर्ष 1963 में शिक्षण सिद्धांत का सर्वप्रथम प्रयोग किया था ।

Note- ये सभी जानकारियाँ(Information) किताब (Book) से ली गईं हैं, अगर कोइ जानकारी गलत लगे तो आप हमें कमेंट(Comment) कर सकते हैं,हम इसे अपडेट करते रहेंगे। आपको हमारी आर्टिकल अच्छी लगती हैं तो आगे भी पड़ते रहें और इसे शेयर(share) करें।

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