
जब भी आध्यत्मिकता ( Spirituality )की बात आती है तो मदर टेरेसा का चेहरा सामने आता है, वे सच में एक आध्यात्मिक महिला थीं। क्योंकि आध्यात्मिक होने का मतलब पूजा – पाठ करना नहीं होता बल्कि ये धार्मिक होना कहलाता है। आध्यात्मिक होने और धार्मिक होने में अंतर होता है।
बहुत से लोगों को लगता है उन्होंने किसी खाश धर्म के लिए काम किया ,नहीं! उन्होंने अपना पूरा जीवन निःस्वार्थ भावना से दूसरों की सेवा में लगा दिया।आध्यात्मिकता का असली मतलब यही है की निःस्वार्थ भावना से दूसरों के लिए कुछ अच्छा करना, दूसरों के प्रति प्रेम व दया की भावना रखना।वे हमेशा कहती थीं, वो भारत की नागरिक हैं, विश्वाश से कैथोलिक Nun हैं लेकिन उनका पूरा दिल प्रभु येशु का है। उन्होंने अपना पूरा जीवन प्रभु येशु को समर्पित किया था। वे मदद के लिए आये लोगो की मदद के साथ उनके लिए प्रार्थना भी किया करती थी।
हम सभी को उनके जीवन के बारे में जानना चाहिए उनके कार्यों से प्रेम और दया की सीख लेनी चाहिए, और अपने जीवन में उतरना चाहिए।
Contents-
1. मदर टेरेसा का प्रारंभिक जीवन ( early life ) 2. मदर टेरेसा भारत आईं और लोगों की सेवा का कार्य किया 3. एक नया बदलाव 4. मिशिनरी ऑफ़ चैरेटी ( missionary of charity ) 5. मदर टेरेसा पर हुए विवाद 6. उनके जीवन के आखरी कुछ दिन और मृत्यु 7. मदर टेरेसा को मिले अवार्ड और अचीवमेंट ( Award & achievements ) 8. मदर टेरेसा के अनमोल वचन ( mother terasa quotes ) |
1. मदर टेरेसा का प्रारंभिक जीवन: ( early life )
1. पूरा नाम | अग्नेस गोंझा बोयाजीजु ( Agnes Gonxha Bojaxhiu ) |
2. जन्म | 26 अगस्त 1910 |
3. जन्म स्थान | स्कोप्जे शहर, मेसेडोनिया |
4. माता – पिता | druna बोयाजू , नोकोल बोयाजू |
5. भाई – बहन | 1 भाई 1 बहन |
6. धर्म | कैथोलिक |
7. कार्य | मिशिनरी ऑफ़ चैरेटी की स्थापना |
8. मृत्यु | 5 सितम्बर 1997 |
मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 में हुआ था उनके पिता एक व्यापारी थे और बहुत धार्मिक व्यक्ति थे वे येशु ( jesus ) में विश्वाश करते थे। वे हमेश चर्च जाया करते थे। 1919 में उनके पिता की मृत्यु हो गई उसके बाद उनकी माता ने उन्हें पला। उनके पिता के जाने के बाद मदर टेरेसा के परिवार को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा लेकिन उनकी माता ने उन्हें हमेशा मिल बांटकर खाने की सीख दी। मासूम अग्नेस ने अपनी माँ से पूछा की किनके साथ हमें बाँट कर खाना चाहिए उनकी माँ ने कहा कभी अपने रिश्तेदार तो कभी वे लोग जिन्हे इसकी सबसे ज्यादा जरुरत है।
जो कुछ भी मिले उसे मिल बाँट कर ही खाना चाहिए।मदर टेरेसा ने अपनी माता की ये बात अपने पूरे जीवन में उतारा। अग्नेस ने अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी की, और चर्च के कार्यों में भी अपना समय देने लगीं, वे अपनी माँ के साथ चर्च में धार्मिक गीत भी गाया करती थीं उनकी आवाज बहुत ही सुरीली थी। जब वे 12 साल की थीं तब वे एक धार्मिक यात्रा पर गई यहीं से उनके मन में बदलाव आ गया और उन्होंने जीसस क्राइस्ट को अपना मुक्तिदाता स्वीकार किया और अपना जीवन ईश्वर की सेवा में लगाने का फैसला किया और ईश्वर का वचन पूरी दुनिया में फ़ैलाने का फैसला किया। इसके बाद वे डबलिन में रहने लगीं और वापस घर कभी नहीं आईं।आगे चलकर उन्होंने Nun की ट्रेनिंग ली और उन्हें नाम मिला सिस्टर मेरी टेरेसा।
2. मदर टेरेसा भारत आईं और लोगों की सेवा का कार्य किया:
1929 ईस्वी में मदर टेरेसा मिशिनरी के काम से अपनी इंस्टिट्यूट की बाकी Nun के साथ भारत के दार्जलिंग शहर आईं। यहां उन्हें मिशिनरी स्कूल में पड़ने के लिए भेजा गया। 1931 में उन्होंने Nun के रूप में प्रतिज्ञा ली, इसके बाद उन्हें कलकत्ता शहर भेजा गया। डबलिन की सिस्टर लोरेटो द्वारा संत मेरी स्कूल की स्थापना की गई , जहाँ गरीब बच्चे पड़ते थे मदर टेरेसा को उनको पड़ने का काम दिया गया उनको बंगाली और हिंदी दोनों भाषाओँ का ज्ञान था। वे उनको इतिहास एवं भूगोल पड़तीं थी। कई साल तक उन्होंने इस कार्य को पूरी निष्ठा और लगन से किया। 1937 में उन्हें मदर की उपाधि से सम्मानित किया गया, 1944 में वे संत मेरी स्कूल की प्रिंसिपल बन गईं।

3. एक नया बदलाव:
ये 10 सितम्बर 1946 की बात है उनको एक नया अनुभव हुआ जिसके बाद उनकी जिंदगी बदल गई मदर टेरेसा के अनुसार जब वे कलकत्ता से दार्जिलिंग कुछ काम के लिए जा रहीं थी तभी उनसे येसु ( jesus ) ने बात की और कहा अध्यापन का कार्य छोड़ कर कलकत्ता के गरीब, लाचार, बीमार लोगों की सेवा करो।
1948 में उन्हें कान्वेंट छोड़ने का परमिशन मिल गया, फिर उन्होंने स्कूल छोड़ दिया और सफ़ेद जिसमे नीली धारी वाली साड़ी को अपना लिया जीवन भर इसी में दिखीं। उन्होंने बिहार के पटना से नर्सिंग की ट्रेनिंग ली और फिर वापस कलकत्ता आ गई और अपनी सेवा के कार्य में गई। उन्होंने अनाथ बच्चों के लिए आश्रम बनाये ये सब देखते हुए कई चर्च ने भी उनकी मदद के लिए हाँथ आगे बढ़ाये उनको कई परेसानियों का सामना करना पड़ा। उन्हें खुद भी भूखा रहना पड़ता था और लोगों से मदद माँगन होता था लेकिन वे इन सब से नहीं घबराई उनको ईश्वर पर पूरा विश्वाश था की जिस कार्य को उन्हें शुरू करने को बोला है उसे पूरा करने में ईश्वर हमेशा साथ रहेगा।
4. मिशिनरी ऑफ़ चैरेटी: ( missionary of charity )
मदर टेरेसा के अत्याधिक प्रयास के कारण 7 अक्टूबर 1950 में उन्हें मिशिनरी ऑफ़ चेरेटी बनाने का परमीशन मिल गया। इस संस्था के वोलेंटियर संत मेरी स्कूल के शिक्षक ही थे वे अपनी इच्छा से सेवा भावना से इस संस्था से जुड़े थे। शुरू के समय में इस संस्था में 12 लोग कार्य करते थे आज यहां 4000 से भी ज्यादा Nun काम कर रही हैं। इस संस्था का उद्देश्य लोगों की मदद करना है इस संस्था के द्वारा अनाथालय, नर्सिंग होम, वृद्ध आश्रम बनाये गए ताकि जिनका दुनिया में कोई नहीं है उनकी मदद की जा सके।
उस समय कलकत्ता में कुष्ठ रोग और प्लेग फैला हुआ था, मदर टेरेसा और उनकी संस्था स्वयं ही ऐसे मरीजों की सेवा किया करती थी, वे घाव को हाँथ से साफ़ कर मरहम पट्टी किया करते थे। कलकत्ता में उस समय छुआछूत की बीमारी भी फैली थी लाचार बीमार लोगों को समाज से बहिष्कृत किया जाता था ऐसे लोगों की सेवा का कार्य मदर टेरेसा किया करती थीं वे उनके लिए मशीहा के सामान बन गई थीं।
1965 ईस्वी में मदर टेरेसा ने रोम के पॉप जॉन पाल 6 से अपनी मिशिनरी को दुसरे देशों तक फ़ैलाने की अनुमति मांगी। भारत के बाहर पहला मिशन ऑफ़ चेरेटी का संस्थान वेनेजुएला में शुरू हुआ। आज 100 से भी ज्यादा मिशन ऑफ़ चेरेटी संस्थान है। स्वतन्त्र भारत के सभी बड़े नेता उनके सेवा के कार्य की सरहना किया करते थे।



5. मदर टेरेसा पर हुए विवाद:
सभी लोग उनके निःस्वार्थ सेवा के काम को जानते थे और उनकी प्रसन्नसा भी होती थी लेकिन फिर भी लोगों ने मदर टेरेसा के जीवन और उनके काम को विवादों में लेकर खड़ा कर दिया। लोगों ने उनपर आरोप लगाए की वे लोगों का धर्म परिवर्तन के इरादे से उनकी सेवा करतीं हैं, लोग उन्हें अच्छा इंसान ना समझकर ईसाई धर्म का प्रचारक समझते थे, लेकिन इन सब बातों की परवाह ना करते हुए मदर टेरेसा अपना पूरा ध्यान अपने निःस्वार्थ सेवा के काम में लगाती थीं।
6. उनके जीवन के आखरी कुछ दिन और मृत्यु:

मदर टेरेसा 1983 में रोम के पॉप जान पाल द्वितीय से मुलाकात के लिए गई थी उस समय उनको दिल का पहला दौरा आया वे काफी सालो से दिल व किडनी की बीमारी से जूझ रहीं थीं। दूसरी बार 1989 में दिल का दौरा आया, इतनी परेशानी में भी वे अपना कार्य करती थीं , 1097 में उनकी तबियत और ज्यादा ख़राब होती चली गई तो उन्होंने मिशनरी ऑफ़ चेरेटी का अपना हेड का पद छोड़ दिया. जिसके बाद सिस्टर मेरी निर्मला जोशी को इस पद के लिए चुना गया, 5 सितम्बर 1997 को मदर टेरेसा का कलकत्ता में देहांत हो गया।
7. मदर टेरेसा को मिले अवार्ड और अचीवमेंट: ( Award & achievements )
* 1962 में मदर टेरेसा को भारत सरकार ने पदम् श्री अवार्ड से सम्मानित किया।
* 1980 में उन्हें भारत के सबसे बड़े सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया।
* 1985 में अमेरिका की सरकार ने उन्हें मॉडल ऑफ़ फ्रीडम का अवार्ड दिया।
* 1979 में मदर टेरेसा को गरीब, बीमार लोगों की सेवा करने के लिए शांति का नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
* 2003 में पॉप जॉन पाल ने मदर टेरेसा को धन्य कहा उन्हें ब्लेस्ड टेरेसा ऑफ़ कलकत्ता कहकर सम्मानित किया।
8. मदर टेरेसा के अनमोल वचन ( mother terasa quotes ):

“प्रेम और दया भरे शब्द छोटे हो सकते हैं लेकिन वास्तव में उनकी गूँज की कोई सीमा नहीं” “हम सभी ईश्वर के हाँथ में एक कलम के समान हैं” “वे शब्द जो ईश्वर का प्रकाश नहीं देते अँधेरा फैलते हैं” “अनिशासन लक्ष्यों और उपलब्धि के बाच बीच का एक पुल्ल है” “खूबसूरत लोग हमेशा अच्छे नहीं होते लेकिन अच्छे लोग हमेशा खूबसूरत होते हैं” “यदि जीवन जो दूसरों के लिए नहीं जिया जाए वो जीवन नहीं है” |
FAQ –
Q. मदर टेरेसा भारत कब आईं?
Ans.- 1929 ईस्वी में मदर टेरेसा मिशिनरी के काम से अपनी इंस्टिट्यूट की बाकी Nun के साथ भारत के दार्जलिंग शहर आईं।
Q. मदर टेरेसा Nun के रूप में प्रतिज्ञा कब ली?
Ans.- 1931 में उन्होंने Nun के रूप में प्रतिज्ञा ली।
Q. उन्हें मदर की उपाधि से कब सम्मानित किया गया?
Ans.- 1937 में उन्हें मदर की उपाधि से सम्मानित किया गया, 1944 में वे संत मेरी स्कूल की प्रिंसिपल बन गईं।
Q. मदर टेरेसा ने अध्यापन का कार्य क्यों छोड़ा?
Ans.- मदर टेरेसा के अनुसार जब वे कलकत्ता से दार्जिलिंग कुछ काम के लिए जा रहीं थी तभी उनसे येसु ( jesus ) ने बात की और कहा अध्यापन का कार्य छोड़ कर कलकत्ता के गरीब, लाचार, बीमार लोगों की सेवा करो।
Q.- मदर टेरेसा को कब मिशिनरी ऑफ़ चेरेटी बनाने का परमीशन मिला?
Ans.- मदर टेरेसा के अत्याधिक प्रयास के कारण 7 अक्टूबर 1950 में उन्हें मिशिनरी ऑफ़ चेरेटी बनाने का परमीशन मिल गया।
Q. 2003 में पॉप जॉन पाल ने मदर टेरेसा के बारे में क्या कहा?
Ans.- 2003 में पॉप जॉन पाल ने मदर टेरेसा को धन्य कहा उन्हें ब्लेस्ड टेरेसा ऑफ़ कलकत्ता कहकर सम्मानित किया।
Q. उन्हें भारत के सबसे बड़े सम्मान भारत रत्न से कब सम्मानित किया?
Ans. 1980 में उन्हें भारत के सबसे बड़े सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया।
Q.- मदर टेरेसा को नोबेल पुरस्कार से कब सम्मानित किया गया?
Ans- 1979 में मदर टेरेसा को गरीब, बीमार लोगों की सेवा करने के लिए शांति का नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
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