NCERT ( National Council of Educational Research and Training ) ने मुगलों पर एक पूरा अध्याय ( chapter ) हटा दिया। इससे काफी विवाद हुए की आखिर मुगलों को किताबों में क्यों रखा जाना चाहिए? भारतीय इतिहास में मुगलों का क्या योगदान है। आइये हम इस बात को विस्तार से जानते हैं –
इतिहास हमेशा, लगातार चलता ही रहता है। इतिहास का एक सिरा दूसरे सिरे से कई मामलों में जुड़ा है, मुग़ल हमारे समय से 250 साल पहले के हैं अगर आप 300 साल के सिरे को हटा दें तो ना पहले के सिरे को और ना बाद के सिरे को जोड़ा जा सकेगा। इसलिए मुग़ल इतिहास को हटाना भारतीय इतिहास में एक Vacuum/वैक्यूम ( शून्य अंतर ) पैदा कर देगा जहाँ ना तो आप अपनी लोकप्रिय संस्कृति को समझ पाएंगे और ना ही भारतीय इतिहास का एक तार्किक प्रवाह ( Logical flow ) बनेगा।
मुगलों का इतिहास 1526CE से शुरू होकर 1857CE तक का है 300 साल से भी ज्यादा का इतिहास जो मुग़ल शासकों ने खुद बड़े ही सटीक ढंग से लिखवाया अंग्रेजों के आने से पहले का सबसे वेल्ड डॉक्यूमेंट इतिहास है ये, अगर आप इतने बड़े अंतराल के इतिहास को स्कूली किताबों से हटा देंगे तो ये भारतीय इतिहास के साथ नाइंसाफी होगी।

Contents –
1. परिचय 2.अगर भारत से मुग़ल इतिहास हटा दें तो क्या होगा? तीन प्रभाव – (i) भाषा पर प्रभाव (ii) पहनावे पर प्रभाव (iii) खाने पर प्रभाव (iv) आसपास की इमारतें |
2.अगर भारत से मुग़ल इतिहास हटा दें तो क्या होगा?
भारतीय संस्कृति के हर क्षेत्र में मुगलो का खासा प्रभाव रहा है हमारी रसोई में प्याज की thik gravy ( शोरबा ) से लेकर महिलाओं के ओढ़नी, चूड़ीदार, कुर्ती, लहंगा, चोली में मुग़ल इतिहास है। अगर मुगलों को भारतीय इतिहास से हटा दिया गया तो क्या प्रभाव पड़ेगा?
तीन प्रभाव –
(i) भाषा पर प्रभाव –
अगर आप हिंदी-उर्दू भाषा बोलते हैं या आप Bollywood के गाने पसंद करते हैं इन सब में भाषा शाहजहानाबाद की गलियों से ही आई है। हिंदी – उर्दू भाषा की शुरुवात 13 वीं शताब्दी में हिन्दवी ( Hindavi )से मानी जाती है। 19 वीं शताब्दी के मुग़ल बादशाह शाहआलम II भी हिंदी बोला करते थे, जो आज के हिंदी- उर्दू के बेहद करीब है।


तो जो रोजमर्रा का लोकप्रिय संस्कृति ( popular culture ) है वो मुगलों की ही बदौलत है। अगर किताबों से इसे हटा दिया जाए तो आप अपनी ही संस्कृति के लोकप्रिय इतिहास को कैसे समझ पाएंगे।
(ii) पहनावे पर प्रभाव –

महिलाएं जो लहंगा-चोली के साथ ओढ़नी लेती हैं और चांदी का लेस जो अक्सर दुपट्टों में लगाया जाता है वो 17 वीं शताब्दी की बादशाह बेगम नूर जहां की देन है।

(iii) खाने पर प्रभाव –
प्याज को फ्राई करके उसका शोरबा ( thik gravy ) बनाना मुगलाई भोजन ( Cuisine ) का सार है जो आज भारत की हर दूसरी रसोई घर में मौजूद है।

(iv) आसपास की इमारतें –
जब मुगलों सुनहरे दिन ( Glory days ) खत्म हो गए 1707 ईस्वी में औरंगजेब की मृत्यु के बाद तब भी भारत में कई ऐसे शासक थे जो मुगलों से प्रभावित थे। जैसे –
मराठा सिंधिया शासक जंगोजी राव जब उन्होंने दिल्ली में बैठे मुग़ल बादशाह अकबर II से खिलात मांगी, खिलात एक तरीके का कपड़ा होता था जो मुग़ल बादशाह ने एक बार पहना हो, तो उनके आशीर्वाद ( Benediction ) से सराबोर ही गया हो और फिर इसे इनाम के तौर पर मुगलों के लिए काम कर रहे लोगों को दिया जाता था। जंगोजी राव मुगलों के लिए काम नहीं कर रहे थे पर फिर भी उन्होंने बादशाह से खिलात लेकर अपने आप को मुगलों के इतिहास के साथ जोड़ना जरुरी समझा।
ऐसे ही उदयपुर के सरदार सिंह 1838 ईस्वी में राजा बने तब उन्होंने मुग़ल बादशाह बहादुर शाह जफ़र को एक नजराना भेजना चाहा।
भारत के राजा ही नहीं अंग्रेज राजा भी मुग़ल इतिहास से प्रभावित थे तभी तो उन्होंने 1911 ईस्वी में दिल्ली को अपनी राजधानी बनाई और उनकी वास्तुकला ( Architecture ) भी मुग़ल वास्तुकला से काफी प्रेरित ( inspire ) थी।
यही प्रथा आज भी चली आ रही है जहाँ हर साल 15 अगस्त को लाल किले से भारत की आजादी का परचम लहराया जाता है और ऐसे ही मुग़ल इतिहास को भरता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।

अगर मुग़ल इतिहास को किताबों से गायब कर दिया तो जो भरतीय इतिहास का तार्किक प्रवाह ( Logical flow ) है, मुगलों से लेकर अंग्रेजों से लेकर आजाद भारत का वो हम कैसे समझ पाएंगे। कैसे समझ पाएंगे की मुग़ल इतिहास का क्या प्रभाव रहा और उन्हें बाकी राजा और अंग्रेज शासक क्यों इतना खास मानते हैं।
Note- ये सभी जानकारियां (Information) हमने इतिहासकार रुचिका शर्मा के बताये स्त्रोतों (Source ) से लीं हैं । अगर कोइ जानकारी गलत लगे तो आप हमें कमेंट(Comment) कर सकते हैं,हम इसे अपडेट करते रहेंगे। आपको हमारी आर्टिकल अच्छी लगती हैं तो आगे भी पड़ते रहें और इसे शेयर(share) करें।