
Highlights-
पूरा नाम | बिरसा मुंडा |
उपनाम | बिरसा, धरती बाबा, दाऊद, विश्वपिता पिता का अवतार |
जन्म तिथि | 15 नवंबर 1875 ( दिनबृहस्पतिवार ) |
जन्म स्थान | गांव- उलीहातू, जिला- खूँटी, झारखण्ड |
पिता का नाम | मसीह दास |
माता का नाम | कर्म हटू मुंडा ( करनी मुंडा ) |
प्रारंभिक शिक्षा | साल्गा गांव |
उच्च प्राइमरी शिक्षा | चाईबासा इंग्लिश मीडियम स्कूल |
वैवाहिक स्तिथि | अविवाहित |
भाई – बहन | कोमता मुंडा ( बड़ा भाई ), दस्नीकर ( बड़ी बहन ), चंपा ( बड़ी बहन ) |
शिक्षक व गुरु | जयपाल नाग ( प्रारंभिक शिक्षा ), आनंद पण्डे ( धार्मिक गुरु ) |
प्रसिद्धि | *बिरसा मुंडा ‘मुंडा आंदोलन’ के क्रांतिकारी जननायक के रूप में * झारखण्ड के लोग, इन्हे ‘भगवान् बिरसा’ मानने लगे थे। |
आंदोलन के प्रमुख कारण | * खूंटकट्टी व्वस्था व्यवस्था की समाप्ति और बेठ बेकारी * मिशनरियों का दबाओ * आंदोलन से निराशा * छोटा नागपुर वन सुरक्षा कानून |
बिरसा मुंडा का नारा | ‘अबुआ ढिशुम अबुआ राज’ इसका मतलब है हमारा देश हमारा राज ‘उलगुलान’ ( जल- जंगल – जमीन पर दावेदारी ) |
लिखी गई किताब | गाँधी से पहले गाँधी |
बिरसा मुंडा जयंती | 15 नवंबर 2023 |
मृत्यु तिथि | 9 जून 1900 |
मृत्यु स्थान | रांची सेंट्रल जेल, रांची, झारखण्ड |
मृत्यु का कारण | हैजा की बीमारी के कारण |
Contents-
1.बिरसा मुंडा का परिचय 2.बिरसा मुंडा का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा 3. सामाजिक कुरीतियों का बहिष्कार 4.बिरसा मुंडा का नारा और आंदोलन 5.बिरसा मुंडा की गिरफ़्तारी और हत्या 6.बिरसा मुंडा जयंती |
1.बिरसा मुंडा का परिचय –
हम यहाँ आज ऐसे नायक की बात करेंगे जिन्होंने अंग्रेजों के नाक में दम कर दिया था। जिनके बुलानेपर हजारों लोग इकठा हो जाते थे। इन्होने सिर्फ 25 साल की जिंदगी जी लेकिन इनका जीवन आज सभी लोगों के लिए मिशाल बन गया है।
2.बिरसा मुंडा का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा –
बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवम्बर 1875 को झारखण्ड के खूँटी जिले के उलिहातू गावों में हुआ था। इनके बचपन का नाम दाऊद मुंडा था। बिरसा मुंडा का जन्म एक गरीब मुंडा जनजाति परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम सुगुण सुगुन मुंडा और माता का नाम कर्म हटू मुंडा था। उनके बड़े भाई का नाम कोमता मुंडा था, बिरसा की दो बड़ी बहने थी उनके नाम दस्नीकर और चंपा थे, उनके माता – पिता खेत में मजदूरी करके अपना घर चलते थे। घर हालत अच्छी न होने के कारण उनके माता – पिता बिरसा के चाचा के गांव कुरुमबडा गांव चले जाते हैं, इस गावं में उनके पिता को एक जमींदार के घर नौकरी मिल जाती है। बिरसा को बचपन में भीड़, बकरी व गाय चराने का काम दिया गया, बिरसा बचपन में बहुत शरारती थे वे भीड़, बकरी को छोड़ कर पेड़ पर बैठ जाया करते और बांसुरी बजाय करते थे, इससे तंग आकर उनके माता – पिता ने उन्हें उनके मां के पास भेज दिया।
शिक्षा – बिरसा की प्रारंभिक शिक्षा साल्गा क्षेत्र में हुई, उनके शिक्षक जयपाल नाग थे। धीरे – धीरे उन्हें किताबों में उनकी दिलचस्पी बढ़ने लगी, ये देखते हुए उनके शिक्षक ने उन्हें ईसाई मिशनरी स्कूल में जाकर आगे की पढ़ाई करने की सलाह दी। बिरसा ने वहां जाकर आगे की पढ़ाई की।
आगे की पढ़ाई के लिए चाईबासा इंग्लिश मीडियम स्कूल गए।
3.सामाजिक कुरीतियों का बहिष्कार –
उस समय देश में अंधविश्वास फैला हुआ था उनके गाओं में जब किसी व्यक्ति की पत्नी या किसी महिला का देहांत हो जाता था, तो उसेके मृत शरीर के साथ सोने चांदी के आभूषण भी जमीन में दफ़न किया जाता था। वहीँ दूसरी तरफ लोगों लोग भूख से तड़प रहे थे, उस दौर में देश में आकाल का भी कठिन समय चल रहा था।
बिरसा मुंडा को ये डेझ देख कर बहुत दुःख हुआ की लोगों को खाने को नहीं मिल रहा है और लोग अंधविश्वास के कारण कर्ज लेकर सोना- चाँदी खरीद रहे थे और उसे मृतक व्यक्ति के साथ दफना रहे थे। बिरसा ने एक ऐसा होते देख एक बड़ा कदम उठाया उन्होंने आधी रात को दफ़न किये गए एक व्यक्ति के मृत शरीर से आभूषण निकाल लिए, उसे लेकर साहूकार के पास गए और उसे बेच कर अनाज लेकर आये।
जब ये बात उसकी माँ को पता चला तो वह बहुत ज्यादा क्रोधित हो गईं, उन्होंने बिरसा को घर से निकाल दिया, उनकी माँ अपनी परम्पराओं का पालन करने में विशवास रखती थी थी उनका कहना था भूख से मर जायेंगे लेकिन अपनी परम्पराओं को नष्ट होने नहीं देंगे।
इस घटना के बाद बिरसा बहुत दुखी हो गए और जंगल में चले गए और वहां जाकर ध्यान व तपस्या करने लगे। उसी समय उन्हें ‘सिमोगा’ के दर्शन हाय हुए। सिमोगा मुंडा आदिवासियों के सबसे बड़े देवता मने जाते थे। इस अनुभव के बाद से उनमे बदलाव आ गया, उनका चंचल मन बदल गया था। अब वे गॉव लौट आये और जंगल की जड़ी बूटियों के द्वारा लोगों की बीमारियों का इलाज करने लगे। अब लोग भी उन्हें गंभीरता से लेने लगे थे। धीरे – धीर उनकी प्रसिद्धि बढ़ने लगी और लोग उन्हें ‘धरती बाबा’ या ‘बिरसा भगवान्’ कह कर पुकारने लगे।
4.बिरसा मुंडा का नारा और आंदोलन –
अंग्रेज और जमींदार आम गरीब लोगों पर बहुत ही अत्याचार कर रहे थे जिसके खिलाफ बिरसा मुंडा ने उनके खिलाफ कई बड़े विद्रोह किये। बिरसा के आंदोलनों ने अंग्रेजो के नाक में डैम कर दिया था। पोरहट क्षेत्र में पहले से एक आदिवासी मुंडा आंदोलन चल रहा था, बिरसा ने उसमे भाग लिया। वे एक शक्तिशाली युवा के रूप में उभरने लगे।
बिरसा ने उराव, खड़िया, मुंडा आदि जनजातियों के सरदारों से मुलाकात की, और उनके साथ मिलकर अंग्रेजों और जमीदारों के खिलाफ विद्रोह की शुरुवात की, 1अक्टूबर 1894 में बिरसा मुंडा ने एक प्रमुख विद्रोह किया और जो लगान अंग्रेजों को देना पड़ता था उसे बंद करवा दिया और कहा जंगलों पर हम आदिवासियों का अधिकार है हम सदियों से इन जंगलों में रहते आ रहे हैं।
उस समय जमींदार व जागीदार लोग अंग्रेजों के आगे झुक गए थे बिरसा ने अपने आदिवासी लोगों को अंग्रेजो के सामने ना झुकने के लिए प्रेरित किया और कहा हमें हमारे हक़ के लिए खड़ा होना पड़ेगा।
बिरसा मुंडा ने यह नारा दिया – “अबुआ राज एते जाना, महारानी राज टूंडू जाना” जिसका अर्थ था – रानी का राज ख़त्म हो और हमारा राज स्थापित हो। बोलो ‘उलगुलान’ यानी क्रांति जारी रहे।
अंग्रेजों के खिलाफ प्रमुख आंदोलन –
* 1897 में बिरसा मुंडा ने अपने अनुयाइयों के साथ मिलकर खूटी पुलिस थाने पर हमला कर दिए दिया।
* 1898 में तांगा नदी के किनारे बिरसा मुंडा के अनुयाईयों और अंग्रेजों के सेना के बीच युद्ध हुआ। इस युद्ध में बिरसा मुंडा की विजय हुई, उनके बहुत से अनुयाइयों को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया।
* 1899 के आसपास बिरसा मुंडा ने 7000 महिलाओं और पुरुषों का एक संगठन बनाया और फिर एक बार आंदोलन किया। यह आंदोलन झारखण्ड के काफी हिस्सों में फ़ैल गया सभी जगह बिरसा के नारे गूंजने लगे।
* 1900 में बिरसा के अनुयाइयों ने दो सिपाहियों की ह्त्या कर दी, 7 जनवरी 1900 में खूँटी पुलिस स्टेशन पर हमला किया।
* इसके बाद कमिश्नर ए फोबोस और डिप्टी कमिश्नर एस सी स्ट्रीटफील्ड को 150 बंदूकधारी के साथ खूँटी विद्रोह के दमन के लिए भेजा गया, और बिरसा को पकड़ने के लिए इनाम रखा गया, 19 जनवरी को डोगरी पहाड़ी पर संघर्ष हुआ जिसमे अंग्रेजों ने कई महिलाओं और बच्चों को मार डाला।
5.बिरसा मुंडा की गिरफ़्तारी और हत्या –
लोग बिरसा के इस आंदोलन और नारे से प्रभावित होकर अंग्रेजों को लगान देना बंद कर दिया तो ब्रिटिश लोगों ने बिरसा को पकड़ने का अभियान चलाया। बिरसा भूखे – प्यासे लोगों का प्राकृतिक सम्पदा से भूख मिटते थे, उनकी सेवा व मदद करते थे। 1995 में बिरसा मुंडा को गिरफ्तार कर लिया गया और हजारीबाग जेल में डाल दिया गया। लेकिन उनके द्वारा आदिवासियों में जो क्रांति आई थी वो बरक़रार थी, 2 साल की कैद के बाद बिरसा को रिहा कर दिया गया। बिरसा के कैद से छूटने के बाद उनका भव्य स्वागत किया गया। उन्होंने अपना आंदोलन जारी रखा।
जनवरी 1900 में बिरसा मुंडा को अंग्रेजों ने पकड़ लिया और गिरफ्तार कर लिया, उन्हें रांची के कारागार में रखा गया। बिरसा के कमर और पैरों में जंजीरें बांध दी गई, उनके भोजन में धीरे – धीरे जहर मिलाया जाने लगा, जिसके कारण मात्र 25 वर्ष की आयु में, 9 जून 1900 को रांची के कारागार में उनकी मृत्यु हो गई। वे एक क्रांतिकारी युवा थे इसलिए उन्हें शहीद मन जाता है।
6.बिरसा मुंडा जयंती –
बिरसा मुंडा की याद में प्रतिवर्ष 15 नवम्बर को उनके जन्म दिन पर बिरसा मुंडा जयंती मनाई जाती है। रांची, झारखण्ड में उनकी समाधी स्थल पर आधिकारिक समारोह मनाया जाता है। उनके नाम पर – बिरसा मुंडा एयरपोर्ट, बिरसा इंस्टिट्यूट आफ टेक्नोलॉजी सिंदरी, बनवासी छात्रावास कानपुर, सोधो कान्हो बिरसा विश्वविधालय, पुरुलिया की स्थापना की गई।
इसके आलावा बिरसा मुंडा इंटरनेशनल हॉकी स्टेडियम राउरकेला, बिरसा मुंडा ट्राइबल विश्वविधालय की भी स्थापना की गई।
इसके बाद 2008 में बिरसा के जीवन पर आधारित एक फिल्म बानी ‘गाँधी से पहले गाँधी’।
FAQ
Q. बिरसा मुंडा के आंदोलन के क्या – क्या कारण थे?
Ans. खूंटकट्टी व्वस्था व्यवस्था की समाप्ति और बेठ बेकारी,मिशनरियों का दबाओ,आंदोलन से निराशा,छोटा नागपुर वन सुरक्षा कानून।
Q. बिरसा मुंडा का नारा क्या था?
Ans.’अबुआ ढिशुम अबुआ राज’ इसका मतलब है हमारा देश हमारा राज ‘उलगुलान’ ( जल- जंगल – जमीन पर दावेदारी )
Q. बिरसा मुंडा पर लिखी गई किताब का क्या नाम है?
Ans. गाँधी से पहले गाँधी।
Q. आख़री बार बिरसा को कब गिरफ्तार किया गया?
Ans.जनवरी 1900 में बिरसा मुंडा को अंग्रेजों ने पकड़ लिया और गिरफ्तार कर लिया, उन्हें रांची के कारागार में रखा गया। 9 जून 1900 को रांची के कारागार में उनकी मृत्यु हो गई।
Q. बिरसा मुंडा किस नाम से प्रसिद्ध हुए?
Ans.बिरसा मुंडा ‘मुंडा आंदोलन’ के क्रांतिकारी जननायक के रूप में प्रसिद्ध हुए और झारखण्ड के लोग, इन्हे ‘भगवान् बिरसा’ मानने लगे थे क्योकि वे बीमांरियो का इलाज किया करते थे लोगों का मानना था की उनके छूने भर से रोग दूर हो जाते हैं ।
Note- ये सभी जानकारियाँ(Information) इंटरनेट(Internet) से ली गईं हैं, अगर कोइ जानकारी गलत लगे तो आप हमें कमेंट(Comment) कर सकते हैं,हम इसे अपडेट करते रहेंगे। आपको हमारी आर्टिकल अच्छी लगती हैं तो आगे भी पड़ते रहें और इसे शेयर(share) करें।
Comment