भारत में साम्राज्यों का उदय
मगध साम्राज्य –
1.हर्यक वंश | काल: 545-412 इसा पूर्व संस्थापक: बिम्बिसार |
2.शिशुनाग वंश | काल: 412-345 इसा पूर्व संस्थापक: शिशुनाग |
3.नन्द वंश | काल: 344-322 इसा पूर्व संस्थापक: महापद्मनंद |
4.मौर्य वंश | काल: 323-184 इसा पूर्व संस्थापक: चन्द्रगुप्त मौर्य |
1.हर्यक वंश:
प्रथम शासक बिम्बिसार – ( 545-493 )
*उपनाम – श्रेणिक*राजधानी -गिरिब्रज
*धर्म – बौद्ध
*विशेष – इन्होने अपने साम्राज्य की स्थापना के लिए “त्रियक नीति” अपनाई
a. युद्ध b.विवाह c.मैत्री *दरबारी – जीवक ( आयुर्वेद आचार्य )
*मित्र – गौतम बुद्ध
*पत्नी – कोसल देवी, दूसरी पत्नी- चेल्लना, तीसरी पत्नी- क्षेमा
*नगर बसाया – राजगृह *युद्ध द्वारा अंग व चंपा को जीता व साम्रज्य बनाया
*अवन्ति के राजा प्रधोत के ईलाज के लिए आयुर्वेद आचार्य जीवक को भेजा
*बिंबसार महात्मा बुद्ध के मित्र व संरक्षक थे
*किशल प्रशासन की आवश्यकता पर सर्वप्रथम जोर दिया
*बेलुवन नामक उधम गौतम बुद्ध को दान में दिया
द्वितीय शासक अजातशत्रु –
*काल – 493-461 ईसा पूर्व *राजधानी – राजगृह ( बिहार )
*धर्म – बौद्ध *यह सामाराज्यवादी था *पिता की हत्या कर गद्दी में बैठा था
*शक्ति सम्पन्न राज्य के रूप में मगध का उत्कर्ष अजातशत्रु के काल से माना जाता है
*इसके शासन काल केआठवें वर्ष में बुद्ध को महापरिनिर्वाण प्राप्त हुआ
*इसी वर्ष 483 इसा पूर्व प्रथम बौद्ध संगीति राजगृह में बुलाया
*नवीन हथियार रथमूसल व महाशीलकण्टक का प्रयोग किया
*बुद्ध के कुछ अवशेषों को लेकर राजगृह में एक स्तूप निर्मित कराया
*काशी एवं वज्जि संघ को जीता
तृतीय शासक उदायिन –
*काल – 461-445 इसा पूर्व
*राजधानी – पाटलिपुत्र ( पटना )
*विशेष – पिता की हत्या कर राजगद्दी पर बैठा , इसने पाटलिपुत्र शहर बसाया तथा उसे राजधानी बनाया
*धर्म – जैन
अंतिम शासक नागदशक –
*काल – 412 इसा पूर्व *नागदशक की हत्या करके इसके सेनापति शिशुनाग ने वंश की स्थापना की
*पुराणों में नागदशक को दर्शक कहा गया
2.शिशुनाग वंश:
प्रथम शासक शिशुनाग –
*राजधानी – वैशाली
*मगध साम्राज्य का विस्तार – उत्तरी भारत में मालवा से बंगाल तक
द्वितीय शासक कालाशोक –
*काल – 394-366 इसा पूर्व *राजधानी – पाटलिपुत्र
*यहां के पाटलिपुत्र स्थाई रूप से प्राचीन भारत की राजधानी बानी
*वैशाली में द्वितीय बौद्ध संगीति आयोजित किया ( 383 इसा पूर्व )
अंतिम शासक – नन्दिवर्धन
3.नन्द वंश:
प्रथम शासक महापद्मनंद –
* महापद्मनंद को मगध साम्रज्य का प्रथम शूद्र शासक माना जाता है
* इतिहास में इसे “सर्वक्षत्रिय हन्ता” कहा जाता है ( क्षत्रियों का नाश करने वाला )
* उपाधि – अनुलंघित शासक, भार्गव, पृथ्वी का राजा आदि
* कलिंग विजय ( खारवेल के हाँथीगुफा अभिलेख में उल्लेख )* उग्रसेन इसे “महाबोधि” वंश कहता है
द्वितीय शासक घनानंद –
* मगध साम्राज्य का सबसे विशाल सेना वाला शासक
* यूनानी ( ग्रीक ) द्वारा Agrmeej , jaindrmeej भी खा जाता है* इन्ही के शासन काल में 326 इसा पूर्व में सिकंदर ने भारत के पश्चिमी तट पर आक्रमण किया
* सिकंदर का समकालीन
4.मौर्य वंश:
323 इसा पूर्व में चन्द्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य के सहयोग से नन्द वंश के अंतिम शासक घनानंद को पराजित करके मगध पर मौर्य वंश की स्थापना की।
* मौर्य वंश की जानकारी के स्त्रोत- कौटिल्य का “अर्थशास्त्र”, मेगस्थनीज की “इंडिका,” अशोक के अभिलेख, विशाखदत्त की “मुद्राराक्षस,” बौद्ध ग्रंथ – दीपवंश, महावंश, दिव्यवदान, विष्णुपुराण, जैन ग्रन्थ – भद्रबाहु का “कल्पसूत्र”, हेमचंद का परिशिष्ट पर्व , रुद्रदामन का जूनागढ़ अभिलेख, सोमदेव का कथासरित्सागर, क्षेमेन्द्र का वृहतकथामञ्जरी, चीनी यात्री फाह्यान, व्हेनसांग व इत्सिंग का यात्रा विवरण आदि।
प्रथम शासक: चन्द्रगुप्त मौर्य ( 322-298 इसा पूर्व ) –
* राजधानी – पाटलिपुत्र
* गुरु व महामंत्र – चाणक्य ( कौटिल्य/ विष्णुगुप्त )
* जाती के विषय में मदभेद – ब्रह्मणसहित्य “शूद्र” बौद्ध एवं जैन ग्रन्थ क्षत्रिय कुल का मानते हैं विशेष –
* चन्द्रगुप्त मौर्य के नाम का पहला अभिलेख रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख से प्राप्त
* इनके शासन काल की प्रमाणिक तिथि का पता यूनानी स्त्रोत से चलता है
* सौराष्ट्र के गवर्नर “पुष्यगुप्त” ने उनके निर्देश पर “सुदर्शन झील” बनवाई ( गिरनार पहाड़ी गुजरात )
* हिन्दुकुश पर्वत की सीमा पर 305 इसा पूर्व में चन्द्रगुप्त मौर्य और यूनानी शासक सेल्यूकस का युद्ध हुआ जिसमें सेल्यूकस पराजित हुआ फलतः दोनों के बीच संधि हुई, संधि की शर्तों के तहत सेल्यूकस ने अपनी पितृ हेलेना का विवाह चन्द्रगुप्त मौर्य के साथ किया, इससे दहेज के रूप में चन्द्रगुप्त मौर्य को अराकोसिया, जेड्रोसिया एवं पेरीपेमिस्दाई क्षेत्र दिया।
* इस युद्ध का वर्णन “एथियस” ने किया
* सेल्यूकस ने अपने राजदूत मेगस्थनीज को चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में अर्थात भारत भेजा
* 322 इसा पूर्व में प्रथम जैन संगीति आयोजित
* चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन में सम्पूर्ण भारत को चार प्रांतों में बनता बांटा गया –
a.उत्तरापथ – तक्षशिला ( राजधानी )
c.अवंतिका – उज्जैन ( राजधानी )
b.प्राची – पाटलिपुत्र ( राजधानी )
d.दक्षिणापथ – सुवर्णगिरि ( राजधानी )
* चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने जीवनकाल के अंतिम समय में भद्रबाहु के प्रभाव में आकर जैन धर्म ग्रहण किया तथा “श्रवणबेलगोला” ( मैसूर, कर्नाटक ) में उपवास के द्वारा ( सल्लेखना विधि से ) शरीर त्याग दिया ( चंद्रगिरि )
* वर्तमान में यहाँ बहुत बड़ी “गोमतेश्वर” की प्रतिमा स्थापित है
* जस्टिन नामक यूनानी विद्वान् ने चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना को डाकुओं का गिरोह कहा
* जस्टिन ने चन्द्रगुप्त मौर्य को सेंड्रोकोट्स कहा * विलियम जोन्स ने सर्वपर्थम बताया की चन्द्रगुप्त मौर्य ही सेंड्रोकोट्स हैं
* इनका साम्राज्य विस्तार – उत्तर – पश्चिम में ईरान की सीमा तक, दक्षिण में उत्तरी कर्नाटक ( मैसूर ) तक, पूर्व में मगध तक तथा पश्चिम में सोपारा व सौराष्ट्र तक था
* विशाल साम्राज्य पर शासन करने वाला वह भारत का प्रथम शासक था विशेष उपलब्धि – a.उत्तरी – पश्चिम भारत को सिकंदर के उत्तरधिकारियों से मुक्त करायाb.नंदों का उन्मूलन किया सैल्युकस को पराजित कर संधि के लिए विवस किया
अन्य प्रमुख तथ्य – * चन्द्रगुप्त मौर्य के पास 6 लाख की सेना थी * महावंश की टीका में उसे “सकल जम्बूद्वीप” का शासक कहा गया है
* इनकी शासन व्यवस्था का चरम लक्ष – प्रजा के सुख में ही राजा का सुख है और प्रजा की भलाई में ही उसकी भलाई है। राजा को जो अच्छा लगे वह है जो प्रजा को अच्छा लगे ( चाणक्य के अर्थशास्त्र में )
द्वितीय शासक: बिन्दुसार ( चन्द्रगुप्त मौर्य का पुत्र ) 298- 273 इसा पूर्व –
विशेष –
* आजीविक सम्प्रदाय का अनुयायी था
* यूनानी विद्वानों ने अमित्रो cheds ( अमित्रघात ) कहते हैं
* अमित्रघात का अर्थ है – शत्रुओं का वध करने वाला ( फ्लीट )
* प्लीनी के अनुसार मिस्र का राजा टॉलमी द्वितीय फिलाडेल्फस ने अपने राजदूत डायोनिसस को भेजा था
* स्ट्राबो के अनुसार इसके दरबार में सीरिया का शासक एण्टियोकस प्रथम ने अपने राजदूत डाइमेकस को भेजा था
* बिन्दुसार ने सीरिया के शासक से तीन चीजें- मीठा मदिरा, सूखी अंजीर, व दार्शनिक मांगे थे, जिसमें दार्शनिक भेजने से मनकर दिया गया।
* बिन्दुसार के शासनकाल में तक्षशिला में दो बार विद्रोह हुआ। पहला विद्रोह को दबाने के लिए बिन्दुसार ने अशोक को और
बाद में सुसीम को भेजा ( दिव्यदान )
* बिन्दुसार दो समुद्रों का विजेता था – अरब सागर, बंगाल की खाड़ी
* बिन्दुसार को वायु पिरान पुराण में मद्रासागर व जैन ग्रंथ में सिंहसेन कहा गया है
* आर्यमंजुश्रीमूलकल्प के अनुसार बिन्दुसार के राज्य का संचालन चाणक्य करता था
* चाणक्य ने तीन मौर्य राजाओं के राज्य का संचालन किया था
* चाणक्य की मृत्यु के बाद राधागुप्त उसका उत्तराधिकारी बना
note – आजीविक सम्प्रदाय के संस्थापक मक्खलिपुत्र घोषाल के अनुसार इन्हे एकदंडी भी कहा जाता है।
तृतीय शासक: अशोक ( 273- 232 इसा पूर्व ) –
* राजधानी – पाटलिपुत्र
* मगध सिंहासन पर – 273 इसा पूर्व
* राजयभिषेख – 269 इसा पूर्व
* कलिंग विजय – 261 इसा पूर्व
* धर्म – बौद्ध
* मुद्रा – kasharpan ( पण )
* भाषा – पाली ( अधिकांश शिलालेख की भाषा – प्राकृत )
* माता- पिता – सुभद्रांगी/ बिन्दुसार
* अशोक की पत्नी – देवी ( विदिशा के व्यापारी की बेटी )
दूसरी पत्नी – कारुवाकी ( कलिंग की राजकुमारी )
* अशोक के पुत्र – महेंद्र ( देवी की संतान )
द्वितीय पुत्र – teevar ( कारुवाकी की संतान )
* पुत्री – संघमित्रा
कलिंग विजय का कारण –
* हांथी प्राप्त करने के लिए ( कलिंग हांथियों के लिए प्रसिद्ध है )
* लूटेरों के कारन ( समुद्री लूटेरे कलिंग में रहते थे )
* दक्षिण के विजय के लिए
* साम्रज्यवादी एवं विस्तारवादी नीति के कारण
* कलिंग को व्यापार – व्यवस्था की दृष्टि से महत्वपूर्ण समझने के कारण
अशोक का धम्म –
* अशोक ने अपनी प्रजा के कल्याण तथा उत्थान के लिए जो आचार संहिता बनाई थी उसे ही अशोक धम्म कहा गया कोई पृथक धर्म नहीं था
* अशोक के धम्म शब्द का अभिप्राय है माता – पिता के प्रति सहिषुणता, जीवों के प्रति अहिंसा, तथा खर्च और बचत दोनों में नरमी
* अशोक ने कलिंग विजय के बाद बौद्ध धर्म निग्रोथ के प्रभाव में आकर ग्रहण किया
* द्वितीय बौद्ध भिक्षु उपगुप्त ने अशोक को बौद्ध धर्म में दीक्षा दी ( हवेंगसांग के अनुसार )
* अशोक ने जिन अधिकारीयों को अपने धम्म के विकाश एवं देख – रेख के लिए नियुक्त किया उन्हें धर्म महापात्र कहा गया
* अशोक ने अपने पुत्र एवं पुत्री को बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए ( महेंद्र एवं संघमित्रा ) दक्षिण एशियाई देशों में भेजा ( श्रीलंका )
* धम्म पाली भाषा का शब्द है
* अशोक का त्रिसन्घ या त्रिरत्न में विश्वास – बुद्ध , धम्म , और संघ ( भाब्रुगढ लघु शिलालेख )
अशोक के शिलालेख –
शासनादेश एवं सीमाओं के निर्धारण का वर्णन है।
मुख्य भाग –
a.14 वृहद् शिलालेख , b.लघु शिलालेख , c.सात शिलालेख , d.गुफा अभिलेख , e.लघु स्तम्भ
वृहद् शिलालेख –
कुल संख्या 14 , 8 स्थानों से प्राप्त-
1.शहबाजहदी – पाकिस्तान ( खरोष्टी लिपि )
2.मानसेहरा – पाकिस्तान (खरोष्टी लिपि )
3.गिरनार या जूनागढ़ अभिलेख – गुजरात ( ब्रह्ममी लिपि )
4.सोपारा – महाराष्ट्र ( ब्रह्ममी लिपि )
5.काल्सि – उत्तराखंड ( ब्रह्ममी लिपि )
6.jaogad -ओडिसा ( ब्रह्ममी लिपि )
7.dhaoli – ओडिसा ( ब्रह्ममी लिपि )
8.arrgudi – आंध्रप्रदेश ( ब्रह्ममी लिपि )
अशोक ने तेरवां शिलालेख में कलिंग विजय का वर्णन किया है।
लघु शिलालेख – इसमें अशोक के व्यक्तिगत जीवन का इतिहास है।
स्तम्भ लेख – इनकी संख्या सात है जो 6 अलग – अलग स्थानों से प्राप्त हुई हैं , जिनमे प्रमुख हैं-
1.प्रयाग स्तम्भ लेख
2.दिल्ली – मेरठ ( छोटी लता )
3.दिल्ली – टोपरा ( बड़ी लता ) इसमें अशोक के सातों अभिलेखों का उल्लेख है
4.रमपुरवा
5.लोरिया अरेराज
6.लोरिया नंदनगढ़
लघु स्तम्भ लेख –
इसमें अशोक के राजकीय घोषणाओं का उल्लेख है –
सारनाथ – वाराणसी ( उत्तरप्रदेश )
साँची – रायसेन ( मध्यप्रदेश )
रुक्मिनदेई – नेपाल की तराई ( नेपाल )
स्तूप –
* अशोक ने स्तूप निर्माण परम्परा को प्रोत्साहन दिया 84,000 स्तूपों का निर्माण कराया ( बौद्ध जान श्रुति )
* साँची का स्तूप, भरहुत का स्तूप, धर्मराजिक का स्तूप
* स्तूप मौर्य काल का सबसे अच्छा नमूना है
अशोक स्तम्भ – सारनाथ
निर्माण – 250 इसा पूर्व ( सम्राट अशोक द्वारा )
*Lion Capital ( वर्तमान में सारनाथ म्यूजियम में रखा है )
*ऊंचाई – 7 फ़ीट ( आधार सहित )
*बलुआ पथ्थर से निर्मित
साँची –
* रायसेन
* ककनाय और बौद्ध श्री पर्वत ( साँची का प्राचीन नाम )
* साँची स्तूप विश्व धरोहर में शामिल है
* अशोक सम्राट द्वारा निर्मित
गुफायें – अशोक ने बराबर पहाड़ी पर आजीवक सम्प्रदाय के अनुयाइयों के रहने के लिए कारण कर्ण , choper , सुदामा ,व विश्व की झोपडी नामक चार गुफाओं का निर्माण करवाया।
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