चोल, चेर, तथा पाण्ड्य राजवंश इन तीनो वंशो के काल को संगम काल कहते हैं। ( प्रथम ईस्वी से 1200 ईस्वी तक )
संगम का अर्थ – संघ, परिषद्, गोष्ठी
* संगम काल में तीन राजवंश थे –
1)चेर राजवंश –
राजधानी – वांजी ( केरल ), प्रतीक चिन्ह – धनुष, प्रथम शासक – उडियनजेरल ( लगभग 130 ईस्वी )
2)चोल राजवंश –
राजधानी -uruvair ( तमिलनाडु ), प्रतीक चिन्ह – बाघ
3)पाण्ड्य राजवंश –
राजधानी – मदुरई ( तमिलनाडु ), प्रतीक चिन्ह – मछली
* इन तीनो वंशो को संगम काल कहते हैं। इसलिए की इस समय साहित्य विधा के तीन सम्मेलन या संगम बुलाये गए थे।
* तीनो सम्मेलन या संगम निम्न हैं –
1)प्रथम सम्मेलन – स्थान मदुरई ( तमिलनाडु ), अध्यक्ष – अगस्त ऋषि
2)द्वितीय सम्मेलन – स्थान – कपाटपुरम ( अलवये ), अध्यक्ष – तोल्कापियर, विशेष – तोलकप्पियम ( तमिल व्याकरण ग्रन्थ प्राप्त )
3)तृतीय सम्मेलन – स्थान – मदुरई ( तमिलनाडु , अध्यक्ष – नक्कीरर, विशेष – ‘अवधिष्ट’ तमिल साहित्य का संकलन
नोट – इन तीनो सम्मेलन में स्मस्त तमिल साहित्य का संकलन हुआ।
इस काल की प्रमुख रचनाएँ –
1)शिल्पदिकाराम
2)मणिमेखलै
3)जीवक चिंतामणि
4)कुरल
उत्तर प्राचीन कालीन चोल या द्वितीय चोल ( काल : 850-1200 ईस्वी )
* राजधानी – तंजौर, संस्थापक – विजयालय ( नरकेसरी की उपाधि धारण की ), इस वंश की प्रधानता स्थापित करने का श्रेय परांतक प्रथम को है।
* इस काल के प्रसिद्ध शासक :
1) राजाराज प्रथम –
* गंगाईकोंड चोलपुरम मंदिर का निर्माण करवाया।
* यह वर्तमान 2004 में विश्व धरोहर की सूची में शामिल हैं।
* वृहदेश्वर मंदिर, तंजौर तथा एरावदेश्वर मंदिर तंजौर का निर्माण करवाया।
* श्रीलंका पर आक्रमण किया तथा वहां के शासकों को पराजित किया, परन्तु श्रीलंका को अपने अधीन नहीं कर पाया।
2)राजेंद्र प्रथम –
* राजाराज प्रथम का पुत्र था।
* गंगेकोन्ड चोलपुरम को अपनी राजधानी बनाया।
* श्रीलंका को पूर्ण रूप से जीतकर अपने साम्राज्य में शामिल किया।
* उत्तर भारत के राज्यों में कलिंग व बंगाल को जीता।
चोलों का प्रशासन :
* चोल प्रशासन में सर्वाधिक महत्वपूर्ण पद राजा का होता था।
* चोल कालीन शासन व्यवस्था राजतंत्रात्मक थी।
* स्थानीय स्वशासन चोल कालीन प्रणाली की मुख्य विशेषता थी।
* चोलों की ग्राम प्रशासन व्यवस्था की विस्तृत जानकारी उत्तरमेरूर अभिलेख से प्राप्त होती है, जो परांतक प्रथम के काल का है।
* राज्य की आय का प्रमुख स्त्रोत ‘भू- राजस्व’ था, जो उपज का एक तिहाई था।
* चोल काल में स्त्रियों की स्तिथि पूर्वकाल की तुलना में बेहतर थी।
*चोलों ने प्रशासन को चार पदसोपानों में बांटा – 1) राज्य – मंडलम ( प्राचीन नाम ), 2) जिला – कोटटमं, 3) तहसील – नाडू, 4) राजस्व ग्राम – कुर्रम ।
* चोलों की शक्तिशाली नौसेना के कारण बंगाल की खाड़ी को चोलों की झील कहा जाता था।
* सभा – अग्रहारों और ब्राह्मणो की सभा थी, जिसके सदस्यों को पेरूमक्कल कहा जाता था।
* व्यपारियों की सभा नागरम कहलाती थी>
* सोने के सिक्के – काशू
* आम वस्तुओं के आदान-प्रदान का आधार धान था।
धर्म-
चोल मुख्यतः शैव धर्म के उपासक थे तथा इन्होने शैव धर्म के साथ – साथ वैष्णव धर्म को भी संरक्षण प्रदान किया।
* इनके काल में धर्म के दो प्रकार के संघ थे-
1) नयनार संघ – शैव धर्म के अनुयाई
2) अलवार संघ – वैष्णव धर्म के अनुयाई
नोट –
* शिव की नृत्यरत की नटराज प्रतिमा का निर्माण।
* इस काल में भक्तिकाल की शुरुआत हुई।
* प्राचीन काल में चोलों का पंचायत व संस्था बहुत प्रसिद्ध थी।
मंदिर निर्माण – इनके समय दक्षिण भारत में मंदिर की द्रविड़ शैली का विकाश हुआ।
* इस शैली के मंदिर प्रमुख मंदिर – कांची का कैलाशनाथ मंदिर तथा तंजौर में राजाराज द्वारा निर्मित राजराजा मंदिर या वृहदेश्वर मंदिर है।
* तमिल साहित्य के त्रिरत्न – कम्बन, ओट्टकुट्टन औ पुग्लेंदि।
* कन्नड़ साहित्य के त्रिरत्न – पम्प, पोंन्न, रत्न। ( 1200 ईसा पूर्व तक का इतिहास समाप्त )
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