
Contents-
1.गुप्त वंश 2.शासक और उनके कार्यकाल 3.हूणों का आक्रमण – 4.गुप्तकालीन संस्कृत ,सामाजिक जीवन 5.व्यापार 6.गुप्त प्रशासन 7.शिक्षा 8.चित्रकला 9.गुप्तकालीन अभिलेख एवं उनके प्रवर्तक 10.गुप्तकालीन साहित्य 11.गुप्तकाल में चिकित्सा |
1.गुप्त वंश-कुषाण साम्राज्य के पतन के बाद भारत में किसी बड़े साम्राज्य का अस्तित्व न रहा। किन्तु गुप्त साम्राज्य की स्थापना के साथ ही पुनः राजनीतिक एकता स्थापित हो गई। गुप्त शासकों ने एक बड़े साम्राज्य की स्थापना की। इनका उदय तीसरी सदी के अंत में प्रयाग के निकट कौशाम्बी में हुआ।
जाती –
गुप्तों की जाती के सम्बन्ध में मतभेद है – के पी जायसवाल – जाट डॉ राय चौधरी – ब्राह्मण गौरी शंकर ओझा – क्षत्रिय
उत्पत्ति के श्रोत –
A.बौद्ध ग्रंथ – ‘आर्यमंजूश्रीमूलकल्प’ , चंद्रगर्भ, परिपृच्छ।
B.जैन ग्रन्थ – हरिवंश ,कुवलमाला
C.लौकिक साहित्य – विशाखदत्त की ‘देवीचंद्रगुप्तम’ ( नाटक ), जिसमें रामगुप्त व चन्द्रगुप्त के बारे में जानकारी मिलती है।
D.अन्य साहित्य – ‘अभिज्ञानशाकुंतलम’, ‘रघुवंशम’, ‘मुद्राराक्षस’, ‘मृच्छकटिकम’, ‘हर्षचरित’, वात्सायन का ‘कामसूत्र’ आदि।
E.अभिलेखीय साक्ष्य – समुद्रगुप्त का प्रयागप्रशस्तिक, उदयगिरि अभिलेख ( चन्द्रगुप्त द्वितीय ), कुमारगुप्त का विलसड़ स्तम्भ
लेख, स्कंदगुप्त का भीतरी स्तम्भ लेख।
F.वदेशी यात्री – फाह्यान चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय आया, ह्वेनसांग – कुमारगुप्त ने नालंदा विहार की स्थापना की।
2.शासक और उनके कार्यकाल -1) श्रीगुप्त (240-280AD)- गुप्त वंश का आदिराज (महाराजा की उपाधि धारण की )
2)घटोत्कच (280-319AD)- महाराजा की उपाधि धारण की
3) चन्द्रगुप्त प्रथम (319-335AD)4)
4) समुद्रगुप्त (335-375AD)
5) रामगुप्त (375-375AD)
6) चन्द्रगुप्त द्वितीय ( 375-414AD)
7) कुमारगुप्त (415-467AD)
8) स्कंदगुप्त (455-467AD)
9) भानगुप्त 10) विष्णुगुप्त ( अंतिम शासक 550 AD तक )
10) विष्णुगुप्त – अंतिम शासक (550AD) तक
note- गुप्त वंश की स्थापना श्रीगुप्त ने किया परन्तु वास्तविक संस्थापक चन्द्रगुप्त हैं।
चन्द्रगुप्त प्रथम –
* राज्याभिषेक – 319AD
* इसने लिच्छवी कुल की कन्या ‘कुमारदेवी’ से विवाह किया था।
* महाराजाधिराज की उपाधि धारण की।
* विशेष – (319-320AD) गुप्त संवत चलाया। ( गुप्त संवत व शक संवत 78AD के बीच 241 वर्षों का अंतर है)
समुद्रगुप्त –
* इसे भारत का नेपोलियन ( विन्सेंट स्मिथ ) कहा जाता है।
* इसे ‘धरणिबंध’ के नाम से भी जाना जाता है।
* वास्तविक लक्ष्य – धरणिबंध ( पृथ्वी को बांधना )
* इसने ‘परमभट्टारक’ ( विक्रमांक व अश्वमेघ कर्त्ता ) की उपाधि धारण की।
* विश्व विजय का स्वप्न देखा था।
* दक्षिण को जीतने वाला प्रथम शासक, परन्तु विजय के पश्चात् साम्राज्यों को उनके शासकों को वापस कर दिया।
* इसने अपने दक्षिण विजय अभियान के दौरान तीन नीतियां चलाईं – 1) ग्रहण ( शत्रु पर अधिकार )2) मोक्ष ( शत्रु को मुक्त )3)
अनुग्रह ( राज्य को लौटना )
* समुद्रगुप्त की इस नीति को हरिषेण ने ‘ग्रहणमोक्षनुग्रह’ के नाम से पुकारा।
* समुद्रगुप्त के दक्षिण विजय के समय वहां का शासक महमूद था।
* समुद्रगप्त वैष्णव धर्म का प्रबल समर्थक था।
* इसने वीणा वादक तथा गरुड़ चिन्ह युक्त सिक्के चलाये।
* यह संगीत प्रेमी था। इसे ‘कविराज’ व ‘बहुकविता’ की उपाधि दी गई।
* श्रीलंका के शासक मेघवर्मन ने गया में बौद्ध मंदिर बनवाने की अनुमति मांगी थी, जो उसे मिली।
* समुद्रगुप्त के चारण कवि हरिशेष ने अशोक के प्रयाग स्तम्भ लेख पर समुद्रगुप्त की प्रशस्ति अभिलेख खुदवाई। इसे प्रयाग प्रशस्ति अभिलेख के नाम से जाना जाता है तथा यह अभिलेख चम्पू शैली ( गद्ध + पद्ध ) में लिखा गया। इसके 7 वे श्लोक में
समुद्रगुप्त के विजय अभियान का उल्लेख है।
* समुद्रगुप्त को ‘100 युद्धों’ का विजेता माना जाता है।
रामगुप्त-
* समुद्रगुप्त का पुत्र व उत्तराधिकारी था।
* पत्नी की रक्षा करने में असमर्थ था।( शकों से चन्द्रगुप्त द्वितीय ने बचाया, विशाखदत्त कृत ‘देवीचंद्रगुप्तम’ में उल्लेख )
चन्द्रगुप्त द्वितीय- ( विक्रमादित्त्य )–
* चन्द्रगुप्त द्वितीय ने रामगुप्त की हत्या कर कर राजगद्दी पर बैठा तथा रामगुप्त की पत्नी ध्रुव स्वामिनी( देवी )से विवाह किया।
* इसने उत्तर के 10 गणराज्यों का अंत कर ‘गणारी’ की उपाधी धारण की।
* गुप्त शासकों की राजधानी पाटलिपुत्र थी, पर चन्द्रगुप्त द्वितीय ने ‘उज्जैयिनी’ को अपनी दूसरी राजधानी बनाया। इसी कारण
इसे ‘उज्जैनपुरवराधीश्वर’ भी कहा जाता है।
* यह वैष्णव संप्रदाय का अनुयाई था।
* इसने धार्मिक साहिष्षुणता की नीति अपनाई।
* शकों को पराजित कर भारत से निष्कासित किया, अतः इन्हे ‘शकारी’ की उपाधि दी गई।
* शकों को पराजित करने के उपलक्ष्य में चांदी के सिक्के चलाये, जिसका नाम ‘रूपक’ था तथा ‘विक्रमादित्य’ की उपाधि धारण
की।
* अपने सिक्कों में इन्हे सिंह का वध करते दिखाया गया है।
* अपनी पुत्री प्रभावती का विवाह वाकाटक नरेश रुद्रसेन से किया था। उनकी मृत्यु के पश्चात् उसके साम्राज्य को गुप्त वंश के
संरक्षण में मिलाया।
* उसका संधि विग्राहिक व प्रधान सचिव वीरसेन था। ( उदयगिरि अभिलेख )
* चीनी यात्री फाह्यान ( 399-414) चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय भारत आया था।
* चन्द्रगुप्त द्वितीय के विजय का उल्लेख दिल्ली के मेहरौली लौह स्तम्भ में उल्लेखित है।
* चन्द्रगुप्त स्वयं विद्वान् व विद्वानों का आश्रयदाता था। उसके दरबार में 9 विद्वानों की मंडली थी, जिसे नवरत्न कहा जाता था।
जिसमे – कालिदास, वारामिहिर, धन्वंतरि, अमरसिंह, क्षणपक, वेतालभट्ट, शंकु, घटकपरर व वररूचि जैसे विद्वान् थे।
* चन्द्रगुप्त द्वितीय ने सर्वप्रथम चांदी के सिक्के चलाये थे, इसके धनुर्धारी प्रकार के स्वर्ण सिक्के सर्वाधिक मिले हैं।
* इसी के शासनकाल में उज्जैयिनी में महाकालेश्वर मंदिर का निर्माण हुआ।
कुमारगुप्त –
* इसने नालंदा विश्वविधालय बनवाया।
* मयूर शैली का सिक्का चलवाया।( चांदी/ रजत ) महाराष्ट्र के सतारा से 1395 मुद्राएं मिलीं।
* गुप्तों में पहला शासक जिसने सर्वाधिक 18 अभिलेख प्राप्त हुए। ( जैसे – का भीलसड़ स्तम्भ अभिलेख )
* इसके शासनकाल में हूणों द्वारा प्रथम बार आक्रमण किया गया।
* इसने ‘अश्वमेघ यज्ञ’ करवाया तथा ‘महेन्द्रादित्य’ की उपाधि धारण की।
* इसे अपने शासनकाल के अंतिम समय में पुष्यमित्रों के संघर्ष का सामना करना पड़ा था।* मंदसौर अभिलेख – वत्सभट्टी ने रचना की।
स्कंदगुप्त-
* हूणों को पराजित कर भारत से निष्कासित किया।
* इतिहास में मलेच्छ कहे जाने वाले हूणों से आक्रमण करने के कारण चर्चित ( जूनागढ़ अभिलेख )
* भीतरगांव अभिलेख खुदवाया, इंदौर ताम्रपत्र जूनागढ़ अभिलेख।
* गिरनार पर्वत पर सुदर्शन झील का पुनरुद्धार करवाया एवं झील के किनारे विष्णु मंदिर का निर्माण इसी काल में हुआ।
* हूणों का उल्लेख स्कंदगुप्त के भीतरगांव अभिलेख में हुआ है।
भानगुप्त – * एरण अभिलेख खुदवाया।* पहली बार सतीप्रथा होने का उल्लेख। ( 510AD)
विष्णुगुप्त – अंतिम शासक ( 550AD) तक।
3.हूणों का आक्रमण – * हूणों का प्रबल मुकाबला कुमारगुप्त से हुआ।* स्कंदगुप्त ने इन्हे पराजित किया।* प्रसिद्ध शासक – तोरमान, मिहिरकुल * तिगिन को हूणों का राजा माना जाता है। ( चीनी यात्री सूंगयुन 515-520 AD में भारत आया था ) * मालवा के यशोवर्मन ने हूणों की सत्ता को उखाड़ फेंका।* मंदसौर अभिलेख – लगभग 532 AD में मिहिरकुल को यशोवर्मन ने पराजित किया।
4.गुप्तकालीन संस्कृत, सामाजिक जीवन –
* गुप्त वंश मुख्य रूप से वैष्णव धर्म का अनुयायी था, अनेक शासकों ने ‘परमभागवत’ की उपाधि धारण की।
* इस काल में वैष्णव धर्म चरम सीमा पर थी।
* गुप्त काल ने शैव धर्म को भी संरक्षण दिया था।
* चन्द्रगुप्त द्वितीय के प्रधान सचिव एवं सेनापति वीरसेन शैव धर्मावलम्बी था, जिसने उदयगिरी की गुफाओं का निर्माण कराया।
* इस काल में विष्णु व शिव की संयुक्त रूप स्व पूजा करने की परम्परा शुरू की गई, इसका नाम हरिहर था।
* त्रिमूर्ति की पूजा प्रारम्भ, भगवान के दस अवतार।
* इस काल में मंदिर निर्माण की परंपरा प्रारम्भ हुई।
* हिन्दू धर्म की स्थापना गुप्त काल में हुई।
* बौद्ध धर्म – गुप्तकाल में ही प्रसिद्ध बौद्ध विहार नालंदा की स्थापना हुई।
* प्रमुख मंदिर – दशावतार मंदिर , भीतरगांव का मंदिर ( लक्ष्मण मंदिर ) उत्तर प्रदेश, पारवती मंदिर ( नचना – कुठार ), देवरानी – जेठानी मंदिर ( छत्तीसगढ़ ), लक्ष्मण मंदिर, विष्णु मंदिर ( मध्य प्रदेश ), बौद्ध मंदिर ( बिहार ), महाबोधि मंदिर ( बिहार ). मूर्तिकला –
* सारनाथ व मथुरा का मूर्तिकला केंद्रों के रूप में विकास हुआ।* बुध की मूर्ती के साथ ही हिन्दू देवी – देवताओं की मूर्ती
बनवाई गईं।* शिव के अर्धनारीश्वर रूप की रचना इसी समय की गई।
सामजिक जीवन –
* दास प्रथा चरम सीमा तक पहुंचा।
* सती प्रथा प्रारम्भ। ( 510AD के भानुगुप्त के एरण अभिलेख से प्रथम सती प्रथा होने का प्रमाण मिला।
* शूद्रों की स्तिथि सुधरी, उन्हें महाभारत पुराण सुनने, घरेलु अनुष्ठान करने का अधिकार मिला। शूद्र मुख्यतः कृषक के रूप में उल्लेखित हैं।
* पर्दा प्रथा का प्रचलन केवल उच्च वर्ग की स्त्रियों में था।
* पुनर्मू – पति द्वारा छोड़ी गई स्त्री द्वारा अपनी इच्छा से दूसरा विवाह करने वाली स्त्री को पुनर्मू कहा जाता है। ( मनु )
* इस काल में ब्राह्मणवाद का पुनुरुथान हुआ।
5.व्यापार –
* भारत के पूर्व में ताम्रलिप्ति ( कोलकाता ) तथा पश्चिम में गुजरात के भड़ोच से व्यापार किया जाता था।
* सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यापार स्थल – उज्जैन
* सर्वाधिक महत्वपूर्ण उद्धोग – वस्त्र उद्धोग
* इन्होने कृषि सुधार की तरफ ध्यान आकृष्ट किया, सिंचाई के लिए नहरें बनवाईं व कृषकों को अनेक सुविधाएँ प्रदान की।
* खिल / सील – वह भूमि जो जाती न जा सकती थी।
* गुप्त राजाओं ने सोने के सिक्के जारी किये जिन्हे दीनार कहा गया।
* निखान निधि ( छिपा खजाना ) पर राज्य काव्म ब्राह्मणो का हिस्सा होता था।* रेशम व्यापार – भारत और रोम के मध्य महत्वपूर्ण व्यापार का आधार था।
6.गुप्त प्रशासन–
* मौर्य से कम केंद्रित था, सम्राट की तुलना देवताओं से की जाती थी।
* केंद्रीय शासन के विभिन्न भागों को अधिकरण कहते थे।
* गणतंत्रीय राजव्यवस्था ख़त्म हो गई।
* राजतंत्रात्मक व्यवस्था पर आधारित था।
* भुक्ति का प्रमुख -उपरीक’ कहलाता था।
* देश या राष्ट्र – सबसे बड़ी प्रशासनिक इकाई थी।
* साम्राज्य प्रान्त में बनता हुआ था।
* देवत्व का सिद्धांत प्रचलित था।
प्रमुख अधिकारी –पुरपाल – नगर का प्रमुख अधिकारी
महासंधिविग्रहक – शाही महलों का रखवाला
महादण्डनायक – न्यायधीश
दण्डपाशिक – पुलिस प्रमुख
रनभांडागारिक – सैन्य व वित्त की आवश्यकताओं को पूरा करने वाला अधिकारी
महाबलाधिकृत – सेना छावनी का प्रमुख
महासेनापति – सेना का नेतृत्व
* विकेन्द्रित प्रशासन – साम्राज्य प्रांतों में विभाजित था, प्रान्त भुक्ति कहलाते थे। भुक्ति का प्रमुख ‘उपरीक’ कहलाता था।
मुद्रा –
* गुजरात विजय के पश्चात् चंडी के सिक्के चलाये।
* सोने के सिक्कों को दीनार तथा चंडी के सिक्कों को रूपक कहा जाता था।
* ताम्बे के सिक्कों का प्रचलन गुप्तकाल में कम था ।
* गुप्तों की स्वर्ण मुद्राओं में / सोने की मात्रा कुषाणों की मुद्राओं की तुलना में कम थी।
* इस काल में सर्वाधिक मात्रा में सोने के सिक्के जारी किये गए।
7.शिक्षा –* नालंदा विश्वविधालय शिक्षा का प्रमुख केंद्र था, इसे कुमारगुप्त ने बनवाया था।
8.चित्रकला –
* गुप्तकालीन चित्रों के उत्तम उदाहरण हमें महाराष्ट्र प्रान्त के औरंगाबाद में स्तिथ अजंता की गुफाओं तथा ग्वालियर के समीप स्तिथ बाघ की गुफाओं से प्राप्त होते हैं।
* अजंता के निर्माण 29 गुफाओं में वर्तमान में केवल 6 ही ( गुफा संख्या 1,2,9,10,16,17 )शेष हैं। इन गुफाओं में गुफा संख्या 16 एवं 17 ही गुप्तकालीन हैं।
* अजंता में प्रमुख चित्रों के विषय हैं – मरणासन्न राजकुमारी की, महात्मा बुद्ध का गृहत्याग, माता व पुत्र, जुलूस आदि।* अजंता की गुफाएं बौद्ध धर्म की महायान शाखा से सम्बंधित थीं।
9.गुप्तकालीन अभिलेख एवं उनके प्रवर्तक –शासक/ प्रवर्तक प्रमुख अभिलेख 1) समुद्रगुप्त प्रयाग प्रशस्ति, एरण प्रशस्ति 2) चन्द्रगुप्त द्वितीय साँची अभिलेख, उदयगिरि शिलालेख, मेहरौली प्रशस्ति 3) कुमारगुप्त मंदसौर अभिलेख, विलसड़ स्तम्भ, उदयगिरि गुहालेख 4) स्कंदगुप्त जूनागढ़ प्रशस्ति, भीतरी स्तम्भलेख 5) कुमारगुप्त द्वितीय सारनाथ बुद्ध लेख 6) भानुगुप्त एरण स्तम्भलेख
10.गुप्तकालीन साहित्य –* गुप्त को श्रेष्ठ कवियों का काल कहा गया।* पुराणों का अंतिम रूप से संकलन गुप्त काल में हुआ।* रामायण और महाभारत का संकलन गुप्त युग में हुआ।विशेष – गुप्तकाल को ‘स्वर्ण युग’, ‘क्लासिकल युग’ एवं ‘पैरीक्लीन युग’ भी कहा जाता है।* गुप्तकाल को संस्कृति साहित्य का स्वर्ण युग माना जाता है।
कालिदास – भारत का शेक्सपियर कहा जाता है। (विकयोदशीर्यम )रचना – मेघदूतम, ऋतुसंहार, कुमारसम्भवम, रघुवंश, अभिज्ञानशाकुंतलम, विक्रमोवशीर्यम, मालविका अग्निमित्राम, आदि। उपरोक्त सभी रचना संस्कृत में है।* ‘अभिज्ञानशाकुंतलम’ का विलियम जोन्स द्वारा 1789 में अनुवाद किया गया।
विष्णु शर्मा – पंचतंत्र ( प्राचीन कालीन साहित्य में द्वितीय सर्वाधिक प्रकाशित रचना ) 50 भाषा * पंचतंत्र की गणना संसार के सर्वाधिक प्रचलित ग्रन्थ बाईबिल के बाद दुसरे स्थान पर की जाती है। नारायण पंडित – हितोपदेश शूद्रक – मृच्छकटिकम वात्स्यायन – कामसूत्र अमरसिंह – अमरकोश विशाखदत्त – देवी चंद्रगुप्तम चन्द्रगोमिन – चंद्र व्याकरण सिद्धसेन – न्यायावार्ता बुद्धघोष – विसुद्विमार्ग असंग – योगाचार कामदंत – नीतिसार भास् – स्वप्नवासदत्तम विज्ञान ग्रन्थ – आर्यभट्ट – सूर्य सिद्धांत, दशमलव प्रणाली बीजगणित एवं शून्य का जनक, प्रथम नक्षत्र वैज्ञानिक जिसने यह बताया की सूर्य स्थिर है तथा पृथ्वी उनके चरों चारों ओर चक्कर लगा रही है। भारत में प्रथम उपग्रह का नामकरण इन्ही के नाम पर है।ब्रह्मगुप्त – ब्रह्मसिद्धांतिकीय ( भारत का न्यूटन ) वराहमिहिर – खगोलविद भास्कराचार्य – गणितज्ञ
11.गुप्तकाल में चिकित्सा – (प्रमुख चिकित्सक )* वाग्भट्ट – ‘अष्टांगहृदय’ की रचना की।* धन्वन्तरी – भारत का पहला सर्जन।* सुश्रुत – आयुर्वेद आचार्य।ये तीनो आयुर्वेद के चिकित्सक थे, बौद्ध विद्वान् नागसेन/ नागार्जुन ने इस चिकित्सा का आविष्कार किया।अन्य – * गुप्तों का क्रमबद्ध इतिहास ‘आर्यमंजूश्रीकल्प’ (700 AD) में मिलता है। * संस्कृत ग्रंथों का यूरोपीय भाषा में अनुवाद – अभिज्ञानशाकुंतलम- विलियम जोन्स , भगवत गीता – विल्किन्स * रोमन शास्त्र मुख्यतः खगोलशास्त्र की पुस्तक है।* गुप्तकालीन चार शैव सम्प्रदाय थे -1)महेश्वर 2)पाशुपन – लकुलीश 3)कापालिक 4)कालामुख * आर्यभट्टीय – एकमात्र ग्रन्थ है जिसमें रचनाकार का नाम है।* भारत में मंदिर निर्माण गुप्तकाल से प्रारम्भ हुए।
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